________________ चतुर्थ स्थान--द्वितीय उद्देश ] [ 301 शलाका-पुरुष-सूत्र 315- जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे जहण्णपए चत्तारि अरहता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उपज्जिसु वा उपज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में कम से कम चार अर्हन्त, चार चक्रवर्ती, चार बलदेव और चार वासुदेव उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे (315) / मन्दर-पर्वत--सूत्र ___३१६–जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा-भद्दसालवणे, गंदणवणे, सोमणसवणे, पंडगवणे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत पर चार वन कहे गये हैं। जैसे१. भद्रशाल वन, 2. नन्दन वन, 3. सौमनस वन, 4. पण्डक वन (316) / ३१७-जंबुद्दीवे दीवे मदरे पन्वते पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलामो पण्णत्ताओ, तं जहापंडुकंबलसिला, अइपंडुकंबलसिला, रत्तकंबलसिला, अतिरत्तकंबलसिला। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत पर पण्डक वन में चार अभिषेकशिलाएं कही गई हैं / जैसे१. पाण्डुकम्बल शिला, 2. अतिपाण्डुकम्बल शिला, 3. रक्तकम्बल शिला, 4. अतिरक्त कम्बल शिला (317) / ३१८--मंदरचूलिया णं उर्धार चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता / मन्दर पर्वत की चूलिका का ऊपरी विष्कम्भ (विस्तार) चार योजन कहा गया है / धातकीषण्ड-पुष्करवर-सूत्र ३१६--एवं धायइसंडदीवपुरस्थिमवि कालं आदि करेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति / एवं जाव पुक्खरवरदीवपच्चत्थिमद्धे जाव मदरचूलियत्ति / संग्रहणी-गाथा जंबुद्दोवगमावस्सगं तु कालाओ चूलिया जाव / धायइसंडे पुक्खरवरे य पुवावरे पासे // 1 // इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल-पद (सूत्र 304) से लेकर यावत् मन्दरचूलिका (सूत्र 318) तक का सर्व कथन जानना चाहिए। इसी प्रकार (अर्ध) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी कालपद से लेकर यावत् मन्दर चूलिका तक का सर्व कथन जानना चाहिए (316) / काल-पद से लेकर मन्दर चूलिका तक जम्बूद्वीप में किया गया सभी वर्णन धातकीषण्ड द्वीप के और अर्द्ध पुष्करवर द्वीप के पूर्व-अपर पार्श्वभाग में भी कहा गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org