________________ 300] [स्थानाङ्गसूत्र पर्वत-सूत्र ३०९-सब्वे वि णं णिसढणीलवंतवासहरपव्वता चत्तारि जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तणं, चत्तारि गाउसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता / सभी निषध और नीलवंत बर्षधर पर्वत ऊपर ऊंचाई से चार सौ योजन और भूमि-गत गहराई से चार सौ कोश कहे गये हैं (306) / __३१०-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सोताए महाणदीए उत्तरकले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा—चित्तकूडे, पम्हकूडे, गलिणकूडे, एगसेले / ___ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी के उत्तरी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. चित्रकूट, 2. पद्मकूट, 3. नलिनकूट, 4. एक शैलकूट (310) / 311- जंबुद्दीवे वीवे मंदरस्स पन्वयस्स पुरथिमे णं सोताए महाणदीए दाहिणकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णता, त जहा-तिकडे, बेसमणकडे, अंजणे, मातंजणे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी के दक्षिणी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे - 1. त्रिकूट, 2. वैश्रवणकूट, 3. अंजनकूट, 4. मातांजनकूट (311) / ३१२–जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चस्थिमे णं सोप्रोदाए महाणदीए दाहिणकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा–अंकावती, पम्हावती, ग्रासीविसे, सुहावहे / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी के दक्षिणी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे 1. अंकावती, 2. पक्ष्मावती, 3. प्राशीविष, 4. सुखावह (312) / ३१३--जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स पच्चस्थिम णं सोप्रोदाए महाणदीए उत्तरकले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-चंदपव्वते, सूरपक्वते, देवपव्वते णागपव्वते / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी के उत्तरी किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे 1. चन्द्रपर्वत, 2, सूर्यपर्वत, 3. देवपर्वत, 4. नागपर्वत (313) / ३१४-जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पब्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-सोमणसे, विज्जुष्पभे, गंधमायणे, मालवंते / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत की चारों विदिशाओं में चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे--- 1. सौमनस, 2. विद्युत्प्रभ, 3. गन्धमादन, 4. माल्यवान् (314) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org