________________ 260 ] [ स्थानाङ्गसूत्र जय-पराजय-सूत्र २८०–चत्तारि सेणानो पण्णत्तायो, तं जहा-जइत्ता णामम गा गो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णामम गा णो जइत्ता, एगा जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगा णो जइत्ता णो पराजिणित्ता। एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा----जइत्ता णामम गे णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममगे णो जइत्ता, एग जइत्तावि पराजिपित्तावि, एग णो जइत्ता, णो पराजिणित्ता। सेनाएं चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे-- 1. जेत्री, न पराजेत्री--कोई सेना शत्रु-सेना को जीतती है, किन्तु शत्रु-सेना से पराजित नहीं होती। 2. पराजेत्री, न जेत्री---कोई सेना शत्रु-सेना से पराजित होती है, किन्तु उसे जीतती नहीं है / 3. जेत्री भी, पराजेत्री भी कोई सेना कभी शत्रु-सेना को जीतती भी है और कभी उससे पराजित भी होती है। 4. न जेत्री, न पराजेत्री--कोई सेना न जीतती है और न पराजित ही होती है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जेता, न पराजेता--कोई साधु-पुरुष परीषहादि को जीतता है, किन्तु उनसे पराजित ___नहीं होता। जैसे भगवान् महावीर / 2. पराजेता, न जेता–कोई साधु-पुरुष परीषहादि से पराजित होता है, किन्तु उनको जीत नहीं पाता। जैसे कण्डरीक / 3. जेता भी, पराजेता भी-कोई साधु पुरुष परीषहादि को कभी जीतता भी है और कभी उनसे पराजित भी होता है। जैसे-शैलक राजर्षि / 4. न जेता, न पराजेता–कोई साधु पुरुष परीषहादि को न जीतता ही है और न पराजित __ ही होता है / जैसे—अनुत्पन्न परीषहवाला साधु (280) / २८१-चत्तारि सेणाओ पण्णत्तानो, तं जहा--जइत्ता णाममे गा जयइ, जइत्ता णाममे गा पराजिणति, पराजिणित्ता णामम गा जयइ, पराजिणित्ता णाममगा पराजिणति / एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जइत्ता णाममेगा जयइ, जइत्ता णाममगे पराजिणति, पराजिणित्ता णाममगे जयइ, पराजिणित्ता णाममे गे पराजिणति / पुनः सेनाएं चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे१. जित्वा, पुन: जेत्री---कोई सेना एक वार शत्रु-सेना को जीतकर दुबारा युद्ध होने पर फिर भी जीतती है। 2. जित्वा, पुनः पराजेत्री—कोई सेना एक वार शत्रु-सेना को जीतकर दुबारा युद्ध होने पर . उससे पराजित होती है / 3. पराजित्य, पुनः जेत्री--कोई सेना एक वार शत्रु-सेना से पराजित होकर दुबारा युद्ध होने पर उसे जीतती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org