________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] 2. कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। 4. कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (233) / २३४–चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाम एगे जो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाम एगे कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि स्वसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--कुलसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे __. गामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णों रूवसंपण्णे / पुनः वृषभ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई बैल कुलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई बैल रूपसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई बैल कुलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. कोई बैल न कुलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (234) / बल-सूत्र २३५-चत्तारि उसमा पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपणे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपणे णामं एगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णामं एगे णो रूवसंपणे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे गो बलसंपण्णे गो रूवसंपण्णे / पुन: वृषभ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. कोई बैल बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई बैल रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई बैल बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. कोई वैल न बलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org