________________ 268 [ स्थानाङ्गसूत्र इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं जैसे१. कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है, और बलसम्पन्न भी होता है। 4. कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (231) / २३२-चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तजहा-जातिसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाम एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, जहा-जातिसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपणे णाम एगे जो जातिसंपणे, एगे जातिसंपण्णेवि स्वसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंप्पण्णे णो रूवसंपणे / पुनः वृषभ चार प्रकार के होते हैं / जैसे१. कोई बैल जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई बैल रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई बैल जातिसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है / 4. कोई बैल न जातिसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं / जैसे१. कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न होता है / 4. कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (232) / कुल-सूत्र २३३-चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तजहा--कुलसंपण्णे णामं एगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाम एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णों बलसंपण्णे। एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-कुलसंपण्णे णाम एगे णों बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे / पुनः वृषभ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. कोई बैल कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई बैल बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता / 3. कोई बैल कुलसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। 4. कोई बैल न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं जैसे-- 1. कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org