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________________ [ 267 चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश ] 1. जातिसम्पन्न, 2. कुलसम्पन्न, 3. बलसम्पन्न ( भारवहन के सामर्थ्य से सम्पन्न ), 4. रूपसम्पन्न (देखने में सुन्दर)। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, 2. कुलसम्पन्न, 3. बलसम्पन्न, 4. रूपसम्पन्न (226) / विवेचन–मातृपक्ष को जाति कहते हैं और पितृपक्ष को कुल कहते हैं। सामर्थ्य को बल और शारीरिक सौन्दर्य को रूप कहते हैं। बैलों में ये चारों धर्म पाये जाते हैं और उनके समान पुरुषों में भी ये धर्म पाये जाते हैं। २३०-चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तजहा-जातिसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपणे णाम एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे। एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तजहाजातिसंपण्णे णाममगे जो कुलसंपणे, कुलसंपण्णे णाममगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे। चार प्रकार के वृषभ कहे गये हैं, जैसे१. कोई बैल जाति से सम्पन्न होता है, किन्तु कुल से सम्पन्न नहीं होता। 2. कोई बैल कुल से सम्पन्न होता है, किन्तु जाति से सम्पन्न नहीं होता। 3. कोई बैल जाति से भी सम्पन्न होता है और कुल से भी सम्पन्न होता है। 4. कोई बैल न जाति से सम्पन्न होता है और न कुल से ही सम्पन्न होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष जाति से सम्पन्न होता है, किन्तु कुल से सम्पन्न नहीं होता। 2. कोई पुरुष कुल से सम्पन्न होता है, किन्तु जाति से सम्पन्न नहीं होता। 3. कोई पुरुष जाति से भी सम्पन्न होता है और कुल से भी सम्पन्न होता है। . 4. कोई पुरुष न जाति से सम्पन्न होता है और न कुल से ही सम्पन्न होता है (230) / २३१-चत्तारि उसभा पण्णत्ता, त जहा-जातिसंपण्णे णाम एगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे / एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-जातिसंपण्णे णाम एगे जो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाम एगे णों जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णों बलसंपण्णे। पुनः वृषभ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. कोई बैल जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 2. कोई बैल बलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. कोई बैल जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। 4. कोई बैल न जातिसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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