________________ 270 [ स्थानाङ्गसूत्र 3. कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (235) / हस्ति-सूत्र २३६-चत्तारि हत्थी पण्णता, तं जहा-भद्दे, मंदे, मिए, संकिण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--भद्दे, मंदे, मिए, संकिण्णे / हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. भद्र-धैर्य, वीर्य, वेग आदि गुण वाला। 2. मन्द-धैर्य, वीर्य आदि गुणों की मन्दतावाला। 3. मृग-हरिण के समान छोटे शरीर और भीरुतावाला। 4. संकीर्ण-उक्त तीनों जाति के हाथियों के मिले हुए गुणवाला। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--. 1. भद्रपुरुष-धैर्य-वीर्यादि उत्कृष्ट गुणों की प्रकर्षतावाला। 2. मन्दपुरुष-धैर्य-वीर्यादि गुणों की मन्दतावाला। 3. मृगपुरुष-छोटे शरीरवाला, भीरु स्वभाववाला / 4. संकीर्णपुरुष-उक्त तीनों जाति के पुरुषों के मिले हुए गुणवाला (236) / 237-- चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, ते जहा--भद्दे णाममेगे भद्दमणे, भद्दे णाममेगे मंदमणे, भद्दे णाममेगे मियमणे, भद्दे णाममेगे संकिण्णमणे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता. तं जहा-भद्दे णाममेगे भद्दमणे, भद्दे णाममेगे मंदमणे, भद्दे णाममेगे मियमणे, भद्दे णाममेगे संकिण्णमणे / पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. भद्र और भद्रमन - कोई हाथी जाति से भद्र होता है और भद्र मनवाला(धीर)भी होता है। 2. भद्र और मन्दमन-कोई हाथी जाति से भद्र, किन्तु मन्द मनवाला (अत्यन्त धीर नहीं) होता है। 3. भद्र और मृगमन-कोई हाथी जाति से भद्र, किन्तु मग मनवाला (भीरु) होता है। 4. भद्र और संकीर्णमन-कोई हाथी जाति से भद्र, किन्तु संकीर्ण मनवाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. भद्र और भद्रमन--कोई पुरुष स्वभाव से भद्र और भद्र मनवाला होता है। 2. भद्र और मन्दमन-कोई पुरुष स्वभाव से भद्र किन्तु मन्द मनवाला होता है। 3. भद्र और मृगमन- कोई पुरुष स्वभाव से भद्र, किन्तु मृग मनवाला होता है। 4. भद्र और संकीर्ण मन--कोई पुरुष स्वभाव से भद्र, किन्तु संकीर्ण मनवाला होता है (237) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org