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________________ समवाया कट, शैल, शिखरी, प्रारभार, गुफा प्राकर, द्रह, और सरिताओं का कथन है। छठे नम्बर में कही हयी बात नन्दी में भी इसी प्रकार है। समवायाङ्ग व नन्दीसूत्र के अनुसार स्थानाङ्ग की वाचनाएं संख्येय हैं, उसमें संख्यात श्लोक हैं, संख्यात संग्रहणियाँ हैं। अंगसाहित्य में उस का तृतीय स्थान है। उस में एक श्र तस्कन्ध है, दश अध्ययन हैं। इक्कीम उद्देशनकाल हैं / बहत्तर हजार पद हैं / संख्यात अक्षर हैं यावत् जिन प्रज्ञप्त पदार्थों का वर्णन है / ___ स्थानाङ्ग में दश अध्ययन हैं / दश अध्ययनों का एक ही श्रु तस्कन्ध है। द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ अध्ययन के चार-चार उद्देशक हैं / पंचम अध्ययन के तीन उद्देशक हैं। शेष छह अध्ययनों में एक-एक उद्देशक हैं। इस प्रकार इक्कीम उद्देशक हैं। समवायांग और नन्दीसूत्र के अनुसार स्थानान की पदसंख्या बहत्तर हजार कही गई है। प्रागमोदय समिति द्वारा प्रकाशित स्थानाङ्ग की सटीक प्रति में सात सौ 83 (783) सूत्र हैं / यह निश्चित है कि वर्तमान में उपलब्ध स्थानाङ्ग में बहत्तर हजार पद नहीं हैं। वर्तमान में प्रस्तुत सूत्र का पाठ 3770 श्लोक परिमाण है। स्थानाङ्गसूत्र ऐसा विशिष्ट प्रागम है जिसमें चारों ही अनुयोगों का समावेश है। मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' ने लिखा है कि 'स्थानाङ्ग में द्रव्यानुयोग को दृष्टि से 426 सूत्र, चरणानुयोग की दृष्टि से 214 सूत्र. गणितानुयोग की दृष्टि से 109 सूत्र और धर्मकथानुयोग की दृष्टि से 51 सूत्र हैं। कुल 800 सूत्र हुये / जब कि मूल सूत्र 783 हैं / उन में कितने ही सत्रों में एक-दूसरे अन्योग से सम्बन्ध है / अतः अनुयोग-वर्गीकरण की दृष्टि से सूत्रों की संख्या में अभिवृद्धि हुई है।" क्या स्थानाङ्ग अर्वाचीन है ? स्थानाङ्ग में श्रमण भगवान महावीर के पश्चात दुसरी से छठी शताब्दी तक की अनेक घटनाएँ उल्लखित हैं, जिससे विद्वानों को यह शंका हो गयी है कि प्रस्तुत आगम अर्वाचीन है / वे शंकाएँ इस प्रकार हैं (1) नववें स्थान में गोदामगण, उत्तरवलिस्सहगण, उद्देहगण, चारण गण, उडुवातितगण, विस्सवातितगण, कामडिढगण, माणवगण, और कोडितगण इन गणों की उत्पत्ति का विस्तृत उल्लेख कल्पसूत्र में है।४ प्रत्येक गण की चार-चार शाखाएँ, उद्देह आदि गणों के अनेक कुल थे। ये सभी गण श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् दो सौ मे पाँच सौ वर्ष की अवधि तक उत्पन्न हुये थे। (2) सातवें स्थान में जमालि, तिष्यगुप्त, प्राषाढ़, अश्वमित्र, गङ्ग, रोहगुप्त, गोष्ठामाहिल, इन सात निह्नवों का वर्णन है। इन सात निह्नवों में से दो निह्नव भगवान महावीर को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद हुए और शेष पात्र निर्वाण के बाद हये।९५ इनका अस्तित्वकाल भगवान महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति के चौदहवर्ष बाद से निर्वाण के पांच सौ चौरामी वर्ष पश्चात् तक का है।६ अर्थात् वे तीसरी शताब्दी से लेकर छट्ठी शताब्दी के मध्य में हये। ___उत्तर में निवेदन है कि जैन दृष्टि से श्रमण भगवान महावीर मर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। अतः वे पश्चात् होने 92. समवायांग-सूत्र 139, पृष्ठ 123, मुनि कन्हैयालाल जी म. 93. नन्दी. 87 पृष्ठ 35, पुण्यविजयजी म. 94. कल्पसूत्र सूत्र–२०६ से 216 तक–देवेन्द्रमुनि 95. णाणुप्पत्तीए दुवे उप्पण्णा णिवए सेसा / -अावश्यक नियुक्ति, गाथा-७८४ 96. नोद्दम मोलहसवासा, चोदस वीसुत्तरा य दोण्णि सया / अट्ठावीमा य दुवे, पंचेव सया उ चोयाला / / -आवश्यकनियुक्ति, गाथा----७८३, 784 [31] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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