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________________ चतुर्थ स्थान -प्रथम उद्देश ] [ 213 2. कोई पुरुष जाति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध व्यवहार वाला होता है। 3. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध व्यवहार वाला होता है / 4. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध और अशुद्ध व्यवहार वाला होता है (32) / ३३-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्ध णाम एगे सुद्धपरक्कमे, सुद्ध णाम एगे असुद्धपरक्कमे, असुद्ध णामं एगे सुद्धपरक्कमे, प्रसुद्ध णामं एगे प्रसुद्धपरक्कमे] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष जाति से शुद्ध और शुद्ध पराक्रम वाला होता है। 2. कोई पुरुष जाति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध पराक्रम वाला होता है / 3. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध पराक्रम वाला होता है / 4. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध और अशुद्ध पराक्रम वाला होता है (33) / सुत-सूत्र ३४-चत्तारि सुता पण्णत्ता, तं जहा-अतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले। सुत (पुत्र) चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई सुत अतिजात-पिता से भी अधिक समृद्ध और श्रेष्ठ होता है। 2. कोई सुत अनुजात—पिता के समान समृद्धिवाला होता है। 3. कोई सुत अपजात-पिता से हीन समृद्धि वाला होता है। 4. कोई सुत कुलाङ्गार-कुल में अंगार के समान–कुल को दूषित करने वाला होता है। सत्य-असत्य-सूत्र __३५--चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-सच्चे णामं एगे सच्चे, सच्चे णामं एगे असच्चे, असच्चे णाम एगे सच्चे, असच्चे गाम एगे असच्चे / एवं परिणते जाव परक्कमे / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष पहले भी सत्य (वादी) और पीछे भी सत्य (वादी) होता है। 2. कोई पुरुष पहले सत्य (वादी) किन्तु पीछे असत्य (वादी) होता है। 3. कोई पुरुष पहले असत्य (वादी) किन्तु पीछे सत्य (वादी) होता है / 4. कोई पुरुष पहले भी असत्य (वादी) और पीछे भी असत्य (वादी) होता है (35) / ३६-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सच्चे णामं एगे सच्चपरिणते, सच्चे णाम एगे असच्चपरिणते, असच्चे णाम एगे सच्चपरिणते, असच्चे णामं एगे असच्चपरिणते / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष सत्य (सत्यवादी-प्रतिज्ञापालक) और सत्य-परिणत होता है / 2. कोई पुरुष सत्य, किन्तु असत्य-परिणत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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