________________ चतुर्थ स्थान - प्रथम उद्देश] [ 206 १६-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्ज णाममेगे उज्जुसीलाचारे, उज्ज णाममेगे वंकसीलाचारे, वंके णाममेगे उज्जुसोलाचारे, वंके णाममेगे वंकसीलाचारे / __ पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु शील-आचार वाला होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र शील-आचार वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु शील-प्राचार वाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से वक्र और वक्र शील-प्राचार वाला होता है (16) / २०–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुववहारे, उज्ज गाममेगे वंकववहारे, वंके णाममेगे उज्जुववहारे, वंके णाममेगे बंकववहारे / पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु व्यवहार वाला होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र व्यवहार वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु व्यवहार वाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से वक्र और वक्र व्यवहार वाला होता है (20) / २१-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जुपरक्कमे, उज्ज णाममेगे वंकपरक्कमे, वंके गाममेगे उज्जुपरक्कमे, वंके णाममेगे वंकपरक्कमे। पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु पराक्रम वाला होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र पराक्रम वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु पराक्रम वाला होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से वक्र और वक्र पराक्रम वाला होता है (21) / भाषा-सूत्र २२–पडिमाडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति चत्तारि भासाम्रो भासित्तए, तं जहा-- जायणी, पुच्छणी, अणुण्णवणो, पुट्ठस्स वागरणी। भिक्षु-प्रतिमाओं के धारक अनगार को चार भाषाएँ बोलना कल्पता है, जैसे१. याचनी भाषा- वस्त्र-पात्रादि की याचना के लिए बोलना। 2. प्रच्छनी भाषा--सूत्र का अर्थ और मार्ग प्रादि पूछने के लिए बोलना / 3. अनुज्ञापनी भाषा - स्थान आदि की आज्ञा लेने के लिए बोलना / 4. प्रश्नव्याकरणी भाषा--पूछे गये प्रश्न का उत्तर देने के लिए बोलना (22) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org