________________ 210] [ स्थानाङ्गसूत्र २३-चत्तारि भासाजाता पण्णत्ता, तं जहा-सच्चमेगं भासज्जायं, बीयं मोसं, तइयं सच्चमोसं, चउत्थं प्रसच्चमोसं। भाषा चार प्रकार की कही गई है, जैसे१. सत्य भाषा- यथार्थ बोलना। 2. मषा भाषा-अयथार्थ या असत्य बोलना। 3. सत्य-मृषा भाषा--सत्य-असत्य मिश्रित भाषा बोलना। 4. असत्यामृषा भाषा--व्यवहार भाषा (जिसमें सत्य-असत्य का व्यवहार न हो) बोलना (23) / शुद्ध-अशुद्ध-सूत्र _ २४---चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा--सुद्ध णाम एगे सुद्ध, सुद्ध णाम एगे प्रसुद्ध, प्रसुद्ध णामं एगे सुद्ध, प्रसुद्ध णामं एगे असुद्धे / / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सुद्धे णामं एगे सुद्ध, [सुद्ध णाम एगे असुद्ध, असुद्ध णामं एगे सुद्ध, प्रसुद्ध णाम एगे असुद्धे / चार प्रकार के वस्त्र कहे गये हैं, जैसे---- 1. कोई वस्त्र प्रकृति से (शुद्ध तन्तु आदि के द्वारा निर्मित होने से) शुद्ध होता है और (ऊपरी मलादि से रहित होने के कारण वर्तमान) स्थिति से भी शुद्ध होता है। 2. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध, किन्तु स्थिति से अशुद्ध होता है। 3. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध, किन्तु स्थिति से शुद्ध होता है। 4. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध और स्थिति से भी अशुद्ध होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष जाति से भी शुद्ध होता है और गुण से भी शुद्ध होता है। 2. कोई पुरुष जाति से तो शुद्ध होता है, किन्तु गुण से अशुद्ध होता है। 3. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध होता है, किन्तु गुण से शुद्ध होता है। 4. कोई पुरुष जाति से भी अशुद्ध और गुण से भी अशुद्ध होता है (24) / २५-चत्तारि वत्था पण्णता, तं जहा-सुद्धणाम एगे सुद्धपरिणए, सुद्ध णाम एगे असुद्धपरिणए, प्रसुद्धणाम एगे सुद्धपरिणए, असुद्ध णाम एगे असुद्धपरिणए / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-सुद्ध णाम एगे सुद्धपरिणए, सुद्ध णाम एगे असुद्धपरिणए, असुद्ध णामं एगे सुद्धपरिणए, असुद्ध णाम एगे असुद्धपरिणए / पुनः वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे -- 1. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध और शुद्ध-परिणत होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org