________________ चतुर्थ स्थान-प्रथम उद्देश [207 इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष बाहर (शरीर, गति, चेष्टादि) से ऋजु होता है और अन्तरंग से भी ऋजु (निश्छल व्यवहार वाला) होता है / 2. कोई पुरुष बाहर से ऋजु होता है, किन्तु अन्तरंग से वक्र (कुटिल व्यवहार वाला) होता है। 3. कोई पुरुष बाहर से वक्र (कुटिल चेष्टा वाला) होता है, किन्तु अन्तरंग से ऋजु होता है। 4. कोई पुरुष बाहर से भी वक्र और अंतरंग से भी वक्र होता है।। १३-चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, त जहा-~-उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्ज णाममेगे वंकपरिणते, बंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उज्ज णाम मेगे उज्जुपरिणते, उज्ज णाममेगे वंकपरिणते, बंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते। पुनः वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं१. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु और ऋजु-परिणत होता है / 2. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र-परिणत होता है। 3. कोई वृक्ष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु-परिणत होता है। 4. कोई वृक्ष शरीर से वक्र और वक्र-परिणत होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु-परिणत होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र-परिणत होता है / 3. कोई पुरुष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु-परिणत होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से वक्र और वक्र-परिणत होता है (14) / १४–चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तजहा--उज्जू णाममेगे उज्जुरूवे, उज्जू णाममेगे वंकावे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे, वंकरूवे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उज्ज णाममेगे उन्जुरूवे, उज्ज णाममेगे वंकरूवे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके जाममेगे करवे / पुन: वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं-- 1. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु और ऋजु रूप वाला होता है। 2. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र रूप वाला होता है। 3. कोई वृक्ष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु रूप वाला होता है। 4. कोई वृक्ष शरीर से वक्र और वक्र रूप वाला होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे - 1. कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु रूप वाला होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org