________________ 206 / [ स्थानाङ्गसूत्र 2. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत किन्तु प्रणत (हीन) शील-प्राचार वाला होता है। 3. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत शील-प्राचार वाला होता है। 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रणत शील-प्राचार वाला होता है (6) / १०-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उण्णते णाममेगे उष्णतववहारे, उष्णते णाममेगे पणतववहारे, पणते णाममेगे उण्णतववहारे, पणते णाममेगे पणतववहारे / ] पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत व्यवहार वाला होता है। 2 कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत, किन्तु प्रणत व्यवहार वाला होता है। 3. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत व्यवहार वाला होता है / 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रगत व्यवहार वाला होता है (10) / ११-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतपरक्कमे, उण्णते णाममेगे पणतपरक्कमे, पणते गाममेगे उण्णतपरक्कमे, पणते गाममेगे पणतपरक्कमे] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत पराक्रम वाला होता है। 2. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत, किन्तु प्रणत पराक्रम वाला होता है। 3 कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रगत, किन्तु उन्नत पराक्रम वाला होता है / 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रणत पराक्रम वाला होता है (11) / श्री.जु-वक्र-सूत्रे १२–चत्तारि रुक्खा पण्णता, त जहा- उज्जू णाममेगे उज्ज, उज्जू णाममेगे वंके, चउभंगो 4 / एवं जहा उन्नतपणतेहि गमो तहा उज्जू वंकेहि विभाणियव्वो। जाव परक्कमे [वके णाममेगे उज्ज , वंके गाममेगे वंके] / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा--उज्ज णाममेगे उज्ज 4, [उज्जू णाममेगे वंके, वंके गाममेगे उज्ज , वंके णाममेगे वंके] / वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु (सरल-सीधा) होता है और (यथासमय फलादि देने रूप) कार्य से भी ऋजु होता है। 2. कोई वृक्ष शरीर से ऋजु होता है, किन्तु (यथासमय फलादि देने रूप) कार्य से वक्र होता है। (यथासमय फलादि नहीं देता है।) 3. कोई वृक्ष शरीर से वक्र (टेढ़ा-मेढ़ा) होता है, किन्तु कार्य से ऋजु होता है / 4. कोई वृक्ष शरीर से भी वक्र होता है और कार्य से भी वक्र होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org