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________________ / 205 . चतुर्थ स्थान–प्रथम उद्देश ] पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत मन वाला (उदार) होता है। 2. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत किन्तु प्रणत मन वाला (कंजूस) होता है / 3. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत (हीन) किन्तु उन्नत मन वाला होता है। 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और मन से भी प्रणत होता है (5) / ६-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतसंकप्पे, उण्णते णाममेगे पणतसंकप्पे, पणते णाममेगे उण्णतसंकप्पे, पणते णाममेगे पणतसंकप्पे / [पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत संकल्प वाला होता है। 2. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत किन्तु प्रणत (हीन) संकल्प वाला होता है। 3. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत संकल्प वाला होता है। 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और संकल्प से भी प्रणत होता है (6) / ] ७-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उण्णते गाममेगे उण्णतपणे, उष्णते णाममेगे पणतपरणे, पणते णाममेगे उण्णतपण्णे, पणते णाममेगे पणतपणे / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत प्रज्ञा वाला (बुद्धिमान्) होता है। 2. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत, किन्तु प्रणत प्रज्ञा काला (मूर्ख) होता है / 3. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत प्रज्ञा वाला होता है। 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रज्ञा से भी प्रणत होता है (7) / ८-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा--उण्णते णाममेगे उष्णतदिट्ठी, उण्णते णाममंगे पणतदिट्ठी, पणते णाममेगे उण्णतदिट्ठो, पणते णाममेगे पणतदिट्टी।] पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत दृष्टि वाला होता है। 2. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और प्रणत दृष्टि वाला होता है / 3. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत, किन्तु उन्नत दृष्टि वाला होता है। 4. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और प्रणत दृष्टि वाला होता है (8) / --[चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उष्णतसोलाचारे, उण्णते णाममंगे पणतसीलाचारे, पणते णाममगे उण्णतसीलाचारे, पणते णाममेगे पणतसोलाचारे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत शील-आचार वाला होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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