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________________ 204] | स्थानाङ्गमूत्र एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तजहा–णते गाममेगे उण्णतपरिणते, च उभंगो [उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते] 1 पुन: वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे 1. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नतपरिणत (अशुभ रसादि को छोड़ कर शुभ रसादि रूप से परिणत) होता है। 2. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत होकर भी प्रणतपरिणत (शुभ रसादि को छोड़ कर अशुभ रसादि रूप से परिणत) होता है। 3. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और उन्नत भाव से परिणत होता है। 4. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और प्रणत भाव से परिणत होता है (3) / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष शरीर से उन्नत और उन्नत भाव से परिणत होता है। 2. [कोई पुरुष शरीर से उन्नत और प्रणत भाव से परिणत होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और उन्नत भाव से परिणत होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और प्रणत भाव से भी परिणत होता है।] ४-चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, त जहा -- उग्णते णाममेगे उग्णतस्वे, तहेव चउभंगो (उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते गाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे)। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तजहा-उण्णते गाममेगे (4) उष्णतावे, [उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे] / पुनः वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नत (उत्तम) रूप वाला होता है। 2. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत किन्तु प्रणत रूप वाला (कुरूप) होता है / 3. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत किन्तु उन्नत रूप वाला होता है। 4. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और प्रणत रूप वाला होता है (4) / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष शरीर से उन्नत और उन्नत रूप वाला होता है। [2. कोई पुरुष शरीर से उन्नत किन्तु प्रणत रूप वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से प्रणत किन्तु उन्नत रूप वाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और प्रणत रूप वाला होता है।] ५–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-उण्णते णाममेगे उष्णतमणे 4 (उण्णते णाममेगे पणतमणे पणते गाममेगे उण्णतमणे, पणते णाममेगे पणतमणे)। एवं संकप्पे 8, पण्णे , दिट्ठी 10, सोलायारे 11, ववहारे 12, परक्कमे 13 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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