________________ चतुर्थं स्थान–प्रथम उद्देश | { 203 प्रकार की अन्तक्रियाओं में से कोई एक अन्तक्रिया करके ही मुक्त हुए हैं और आगे होंगे। भरत, गजसुकुमाल, सनत्कुमार चक्रवर्ती और मरुदेवी के कथानक कथानुयोग से जानना चाहिए। उन्नत-प्रणत-सूत्र २–चत्तारि रुक्खा. पण्णत्ता, तजहा-उण्णते णामभेगे उष्णते, उण्णते णामेगे पणते, पणते णाममेगे उण्णते, पणते णाममेगे पणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, त जहा-उण्णते णानेगे उष्णते, तहेव जाव [उण्णते नाममगे पणते, पणते णाममेगे उण्णते] पणते णाममेगे पणते।] वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई वृक्ष शरीर से भी उन्नत होता है और जाति से भी उन्नत होता है / जैसे--शाल वृक्ष / 2. कोई वृक्ष शरीर से (द्रव्य) से उन्नत, किन्तु जाति (भाव) से प्रणत (हीन) होता है / जैसे-नीम। 3. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत, किन्तु जाति से उन्नत होता है / जैसे-अशोक / 4. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और जाति से भी प्रणत होता है। जैसे-खेर / इस प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष शरीर से भी उन्नत होता है और गुणों से भी उन्नत होता है। 2. [कोई पुरुष शरीर से उन्नत होता है किन्तु गुणों से प्रणत होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और गुणों से उन्नत होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से भी प्रणत होता है और गुणों से भी प्रणत होता है (2) / विवेचन-कोई वृक्ष शाल के समान शरीर रूप द्रव्य से उन्नत (ऊंचे) होते हैं और जाति रूप भाव से उन्नत होते हैं / नीम वृक्ष शरीर रूप द्रव्य से तो उन्नत है, किन्तु मधुर रस आदि भाव से प्रणत (हीन) होता है / अशोक वृक्ष शरीर से हीन या छोटा है, किन्तु जाति आदि भाव की अपेक्षा उन्नत (ऊंचा) माना जाता है / खैर (खदिर, बंबूल) वृक्ष जाति और शरीर दोनों से ही हीन होते हैं / इसी प्रकार कोई पुरुष कुल, जाति आदि की अपेक्षा से भी ऊंचा होता है और ज्ञान आदि गुणों से भी ऊंचा होता है / अथवा वर्तमान भव में भी उच्चकुलीन है और आगामी भव में भी उच्चगति को प्राप्त होने से उच्च है / कोई मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेकर भी ज्ञानादि गुणों से प्रणत (हीन) होता कोई मनुष्य नीच कूल में जन्म लेने पर भी ज्ञान, तपश्चरणादि गुणों से उन्नत (उच्च) होता है कोई पुरुष नीच कल में उत्पन्न एवं ज्ञानादि गुणों से भी हीन होता है / इस सत्र के द्वारा वक्ष के समान पुरुषजाति के चार प्रकार बताये गये। वृक्ष-चतुभंगी के समान आगे कही जाने वाली चतुर्भगियों का स्वरूप भी जानना चाहिए। ३--चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तंजहा--उण्णते णाममेगे उग्णतपरिणते, उण्णते गाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उष्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org