________________ 180 / स्थानाङ्गसूत्र 1. कहि णं भंते ! तिपलिग्रोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि जोइसियाणं, हिटि सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिग्रोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति / 2. कहि णं भंते ! तिसागरोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं. हेढि सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु, एन्थ णं तिसागरोवद्वितीया देवकिदिबसिया परिवसंति / 3. कहि णं भंते ! तेरससागरोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि बंभलोगस्स कप्पस्स, हेढि लंतगे कप्पे, एस्थ णं तेरससागरोवमद्वितीया देवकि बिसिया परिवति / किल्विषिक देव तीन प्रकार के कहे गये हैं-तीन पल्योपम की स्थितिवाले, तीन सागरोपम की स्थितिवाले और तेरह सागरोपम की स्थितिवाले / 1. प्रश्न भदन्त ! तीन पल्योपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहां निवास करते हैं ? उत्तर-आयुष्मन् ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर तथा सौधर्म-ईशानकल्पों के नीचे, तीन पल्योपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव निवास करते हैं। 2. प्रश्न-भदन्त ! तीन सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहाँ निवास करते हैं ? उत्तर-आयुष्मन् ! सौधर्म और ईशान कल्पों के ऊपर, तथा सनत्कुमार महेन्द्रकल्पों से नीचे, तीन सागरोपम की स्थितिवाले देव निवास करते हैं। 3. प्रश्न–भदन्त ! तेरह सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहाँ निवास करते हैं ? उत्तर-आयुष्मन् ! ब्रह्मलोक कल्प के ऊपर तथा लान्तककल्प के नीचे तेरह सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव निवास करते हैं / देवस्थिति-सूत्र ४६७–सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवाणं तिणि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। ४६८–सक्कस्स गं देविदस्स देवरणो अभितरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलिग्रोवमाई ठिती पण्णत्ता / ४६६-ईसाणस्स णं देविदस्स देवरणो बाहिरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। देवेन्द्र, देवराज शक की बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है (467) / देवेन्द्र, देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद् की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है (468) / देवेन्द्र, देवराज ईशान की बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है (466) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org