________________ तृतीय स्थान --चतुर्थ उद्देश] [181 प्रायश्चित्त-सूत्र ४७०-तिविहे पायच्छित्ते पण्णते, तं जहा–णाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते, चरित्तपायच्छित्ते। प्रायश्चित्त तीन प्रकार का कहा गया है-ज्ञानप्रायश्चित्त, दर्शनप्रायश्चित्त और चारित्रप्रायश्चित्त (470) / ४७१-तओ अणुग्धातिमा पण्णत्ता, तं जहा-हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं सेवेमाणे, राईभोयणं भुजमाणे। तीन अनुद्घात (गुरु) प्रायश्चित्त के योग्य कहे गये हैं-हस्त-कर्म करने वाला, मैथुन सेवन करने वाला और रात्रिभोजन करने वाला (471) / ४७२–तो पारंचिता पण्णत्ता, तं जहा-दु8 पारंचिते, पमत्ते पारंचिते, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिते। तीन पारांचित प्रायश्चित्त के भागी कहे गये हैं-दुष्ट पारांचित, (तीव्रतम काषायदोष से दूषित तथा विषयदुष्ट साध्वीकामुक) प्रमत्त पारांचित (स्त्यानद्धिनिद्रावाला) और अन्योन्य मैथुन सेवन करने वाला (472) / / ४७३–तो प्रणवटुप्पा पण्णत्ता, तं जहा-साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अण्णधम्मियाणं तेणियं करेमाणे, हत्थातालं दलयमाणे। तीन अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के योग्य कहे गये हैं--सार्मिकों की चोरी करने वाला, अन्यधार्मिकों की चोरी करने वाला और हस्तताल देने वाला (मारक प्रहार करने वाला) (473) / विवेचन-लघु प्रायश्चित्त को उद्घातिम और गुरु प्रायश्चित्त को अनुद्घातिम कहते हैं / अर्थात् दिये गये प्रायश्चित्त में गुरु द्वारा कुछ कमी करना उद्घात कहलाता है। तथा जितना प्रायश्चित्त गुरु द्वारा दिया जावे उसे उतना ही पालन करना अनुद्घात कहा जाता है। जैसे 1 मास के तप में अढाई दिन कम करना उद्धात प्रायश्चित्त है और पूरे मास भर तप करना अनुद्घात प्रायश्चित्त है। हस्तकर्म, मैथुनसेवन और रात्रि-भोजन करने वालों को अनुद्घात प्रायश्चित्त दिया जाता है। पारांचिक प्रायश्चित्त का प्राशय बहिष्कृत करना है। वह बहिष्कार लिंग (वेष) से, उपाश्रय ग्राम आदि क्षेत्र से नियतकाल से तथा तपश्चर्या से होता है। तत्पश्चात् पुन: दीक्षा दी जाती है। जो विषय-सेवन से या कषायों की तीव्रता से दुष्ट है, स्त्यानद्धि निद्रावाला एवं परस्पर मैथुन-सेवी साधु है, उसे पारांचित प्रायश्चित्त दिया जाता है। तपस्या-पूर्वक पुन: दीक्षा देने को अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त कहते हैं / जो साधर्मी जनों के या अन्य धार्मिक के वस्त्र-पात्रादि चुराता है या किसी साधु आदि को मारता-पीटता है, ऐसे साधु को यह अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त दिया जाता है / किस प्रकार के दोषसेवन से कौन सा प्रायश्चित्त दिया जाता है, इसका विशद विवेचन वृहत्कल्प आदि छेदसूत्रों में देखना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org