________________ तृतीय स्थान-चतुर्थ उद्देश] [ 179 2. महोरगे वा महिड्डोए जाव महेसक्खे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे उम्मज्ज-णिमज्जियं करेमाणे देसं पुढवीए चालेज्जा / 3. णागसुवण्णाण वा संगामंसि वट्टमाणंसि देसं पुढवीए चलेज्जा। इच्चेतेहि तिहि ठाणेहि देसे पुढवीए चलेज्जा। तीन कारणों से पृथ्वी का एक देश (भाग) चलित (कम्पित) होता है 1. इस रत्नप्रभा नाम की पृथ्वी के अधोभाग में स्वभाव परिणत उदार (स्थूल) पुद्गल आकर टकराते हैं, उनके टकराने से पृथ्वी का एक देश चलित हो जाता है। 2. मद्धिक, महाद्य ति, महाबल, तथा महानुभाव महेश नामक महोरग व्यन्तर देव रत्नप्रभा पृथ्वी के अधोभाग में उन्मज्जन-निमज्जन करता हुआ पृथ्वी के एक देश को चलायमान कर देता है। 3. नागकुमार और सुपर्णकुमार जाति के भवनवासी देवों का संग्राम होने पर पृथ्वी का एक देश चलायमान हो जाता है (464) / ४६५–तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा, तं जहा 1. अधे णं इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते गुप्पेज्जा। तए णं से घणवाते गुविते समाणे घणोदहिमेएज्जा / तए णं से घणोदही एइए समाणे केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा। 2. देवे वा महिड्डिए जाव महेसक्खे तहारूवस्स समणस्स माहणस्स वा इड्डि जुति जसं बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कम उवदंसेमाणे केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा। 3. देवासुरसंगामंसि वा वट्टमाणसि केवलकप्पा पुढवी चलेजा। इच्चेतेहिं तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा। तीन कारणों से केवल-कल्पा-सम्पूर्ण या प्रायः सम्पूर्ण पृथ्वी चलित होती है-- 1. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अधोभाग में धनवात क्षोभ को प्राप्त होता है / वह धनवात क्षुब्ध होता हुआ घनोदधिवात को क्षोभित करता है। तत्पश्चात् वह धनोदधिवात क्षोभित होता हुआ केवलकल्पा (सारी) पृथ्वी को चलायमान कर देता है। 2. कोई महधिक, महाद्य ति, महाबल तथा महानुभाव महेश नामक देव तथारूप श्रमण माहन को अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम दिखाता हुआ सम्पूर्ण पृथ्वी को चलायमान कर देता है। 3. देवों तथा असुरों के परस्पर संग्राम होने पर सम्पूर्ण पृथ्वी चलित हो जाती है। इन तीन कारणों से सारी पृथ्वी चलित होती है (465) / देवकिल्विषिक-सूत्र ४६६—तिविधा देवकिदिबसिया पग्णत्ता, तं जहा-तिपलिग्रोवमद्वितीया, तिसागरोवमद्वितीया तेरससागरोवमद्वितीया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org