________________ [ स्थानाङ्गसूत्र मिथ्यात्व-सूत्र ४०३---तिविधे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा-अकिरिया, प्रविणए, अण्णाणे / मिथ्यात्व तीन प्रकार का कहा गया है-अक्रियारूप, अविनयरूप और अज्ञानरूप (403) / विवेचन यहां मिथ्यात्व से अभिप्राय विपरीत श्रद्धान रूप मिथ्यादर्शन से नहीं है, किन्तु की जाने वाली क्रियाओं की असमीचीनता से है / जो क्रियाएं मोक्ष को साधक नहीं हैं उनका अनुष्ठान या आचरण करने को प्रक्रियारूप मिथ्यात्व जानना चाहिए। सम्मग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और उनके धारक पुरुषों की विनय नहीं करना अविनय मिथ्यात्व है / मुक्ति के कारणभूत सम्यग्ज्ञान के सिवाय शेष समस्त प्रकार का लौकिक ज्ञान अज्ञान-मिथ्यात्व है। ४०४-अकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा---पयोगकिरिया, समुदाणफिरिया, अण्णाणकिरिया। अक्रिया (दूषित क्रिया) तीन प्रकार की कही गई है-प्रयोग क्रिया, समुदान क्रिया और अज्ञान क्रिया (404) / विवेचन-मन, वचन और काय योग के व्यापार द्वारा कर्म-बन्ध कराने वाली क्रिया को प्रयोगक्रियारूप प्रक्रिया कहते हैं। प्रयोगक्रिया के द्वारा गृहीत कर्म-पुद्गलों का प्रकृतिबन्धादिरूप से तथा देशघाती और सर्व-घाती रूप से व्यवस्थापित करने को समुदानरूप-प्रक्रिया कहा गया है। अज्ञान से जाने वाली चेष्टा अज्ञान-क्रिया कहलाती है / ४०५–पभोगकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–मणपयोगकिरिया, वइपमोगकिरिया, कायपोगकिरिया। _प्रयोगक्रिया तीन प्रकार की कही गई है-मनःप्रयोग-क्रिया, वाक्-प्रयोग क्रिया और कायप्रयोग क्रिया (405) / ४०६-समदाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरसमदाणकिरिया, परंपरसमुदाणकिरिया, तदुभयसमुदाणकिरिया।। समुदान-क्रिया तीन प्रकार को कही गई है-अनन्तर-समुदानक्रिया, परम्पर-समुदानक्रिया और तदुभय-समुदानक्रिया (406) / विवेचन-प्रयोगक्रिया के द्वारा सामान्य रूप से कर्मवर्गणाओं को जीव ग्रहण करता है, फिर उन्हें प्रकृति, स्थिति आदि तथा सर्वघाती, देशघाती आदि रूप में ग्रहण करना समुदानक्रिया है। अन्तर अर्थात् व्यवधान / जिस समुदानक्रिया के करने में दूसरे का व्यवधान या अन्तर न हो ऐसी प्रथम समयत्तिनी क्रिया अनन्तर-समदानक्रिया है। द्वितीय ततीय प्रादि समयों में की जाने वाली समुदान क्रिया को परम्परसमुदानक्रिया कहते हैं / प्रथम और अप्रथम दोनों समयों की अपेक्षा की जाने वाली समुदानक्रिया तदुभयसमुदान क्रिया कहलाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org