________________ 160 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 3. शुद्ध विकट-शुद्ध उष्ण जल (378) / पिण्डषणा-सूत्र ३७६-तिविहे उवहडे पण्णते, तं जहा–फलिप्रोवहडे, सुद्धोवहडे, संसट्ठोवहडे / उपहृत-(भिक्षु को दिया जाने वाला) भोजन-तीन प्रकार का कहा गया है१. फलिकोपहृत-खाने के लिए थाली आदि में परोसा गया भोजन / 2. शुद्धोपहृत-खाने के लिए साथ में लाया हुआ लेप-रहित भोजन / 3. संसृष्टोपहृत-खाने में लिए हाथ में उठाया हुआ अनुच्छिष्ट भोजन (376) / ३८०-तिविहे प्रोग्गहिते पण्णत्ते, तं जहा-जं च प्रोगिण्हति, जं च साहरति, जं च आसगंसि पक्खिवति। अवगृहीत भोजन तीन प्रकार का कहा गया है१. परोसने के लिए ग्रहण किया हुआ भोजन / 2. परोसा हुआ भोजन। 3. परोसने से बचा हुआ और पुनः पाक-पात्र में डाला हुआ भोजन (380) / अवमोदरिका-सूत्र ३८१-तिविधा प्रोमोयरिया पण्णत्ता, तं जहा-उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणोमोदरिया, भावोमोदरिया। अवमोदरिका (भक्त-पात्रादि को कम करने को वृत्ति ऊनोदरी) तोन प्रकार को कही गई है१. उपकरण-अवमोदरिका—उपकरणों को घटाना। . 2. भक्त-पान-अवमोदरिका-खान-पान की वस्तुओं को घटाना। 3. भाव-अवमोदरिका-राग-द्वेषादि दुर्भावों का घटाना (381) / ३८२–उवगरणोमोदरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगे वत्थे, एगे पाते, चियत्तोवहिसाइज्जणया। उपकरण-अवमोदरिका तीन प्रकार की कही गई है 1. एक वस्त्र रखना। 2. एक पात्र रखना। 3. संयमोपकारी समझकर पागम-सम्मत उपकरण रखना (382) / निर्गन्य-चर्या-सूत्र ३८३–तम्रो ठाणा णिग्गंथाण वा जिग्गंथीण वा अहियाए असुभाए प्रखमाए अणिस्सेसाए अणाणगामियत्ताए भवंति, तं जहा-कप्रणता, कक्करणता, अवज्झाणता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org