________________ - तृतीय स्थान तृतीय उद्देश ] [ 156 तीन दुर्गतियां कही गई हैं-नरकदुर्गति, तिर्यग्योनिक दुर्गति और मनुजदुर्गति (दीन-हीन दुःखी मनुष्यों की अपेक्षा से) (372) / ३७३--तप्रो सुगतीनो पण्णत्तानो, तं जहा सिद्धसोगती, देवसोगतो, मणुस्ससोगती। तीन सुगतियां कही गई हैं-सिद्धसुगति, देवसुगत और मनुष्यसुगति (373) / ३७४–तओ दुग्गता पण्णता, तं जहा–णेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मणुस्सदागता / दुर्गत (दुर्गति को प्राप्त जीव) तीन प्रकार के कहे गये हैं—नारकदुर्गत, तिर्यग्योनिकदुर्गत और मनुष्यदुर्गत (374) / ३७५–तम्रो सुगता पण्णत्ता, त जहा-सिद्धसोगता, देवसुग्गता, मणुस्ससुग्गता।, सुगत (सुगति को प्राप्त जीव) तीन प्रकार के कहे गये हैं-सिद्ध-सुगत, देव-सुगत और मनुष्य-सुगत (375) / तप:-पानक-सूत्र __३७६-चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–उस्सेइमे, संसेइमे, चाउलधोवणे। चतुर्थभक्त (एक उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक ग्रहण करना कल्पता है१. उत्स्वेदिम–आटे का धोवन / 2. संसेकिम-सिझाये हुए कैर आदि का धोवन / 3. तन्दुल-धोवन-चावलों का धोवन (376) / ३७७–छट्ठभत्तियम्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तो पाणगाई पडिगाहित्तए, त जहा-तिलोदए, तुसोदए, जवोदए / षष्ठ भक्त (दो उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक ग्रहण करना कल्पता है१. तिलोदक-तिलों के धोने का जल / 2. तुषोदक-तुष-भूसे के धोने का जल / 3. यवोदक-जौ के धोने का जल (377) / ३७८-अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तो पाणगाई पडिगाहित्तए, त जहाआयामए, सोवीरए, सुद्धवियडे / अष्टम भक्त (तीन उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार के पानक लेना कल्पता है१. पायामक (आचामक)-अवस्रावण अर्थात् उबाले हुए चावलों का मांड / 2. सौवीरक-कांजी, छांछ के ऊपर का पानी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org