________________ 158 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. तत्थ णं जे ते तंसा विमाणा, ते णं सिंघाडगसंठाणसंठिया दुहतोपागारपरिक्खित्ता एगतो वेइया-परिविखत्ता तिदुवारा पण्णत्ता / 3. तत्थ गंजे ते चउरंसा विमाणा, ते शं अक्खाडगसंठाणसंठिया सव्वतो समंता वेइयापरि विखत्ता चउदुवारा पण्णत्ता / / विमान तीन प्रकार के संस्थान (आकार) वाले कहे गये हैं-वृत्त, त्रिकोण और चतुष्कोण / 1. जो विमान वृत्त होते हैं वे कमल की कणिका के आकार के गोलाकार होते हैं, सर्व दिशाओं और विदिशाओं में प्राकार (परकोटा) से घिरे होते हैं, तथा वे एक द्वार वाले कहे गये हैं। 2. जो विमान त्रिकोण होते हैं वे सिंघाड़े के आकार के होते हैं, दो ओर से प्राकार से घिरे हुए तथा एक ओर से वेदिका से घिरे होते हैं तथा उनके तीन द्वार कहे गये हैं। 3. जो विमान चतुष्कोण होते हैं वे अखाड़े के आकार के होते हैं, सर्व दिशाओं और विदिशानों में वेदिकानों से घिरे होते हैं, तथा उनके चार द्वार कहे गये हैं (367) / ३६८--तिपतिट्टिया विमाणा पण्णता, तं जहा-घणोदधिपतिद्विता, घणवातपइद्विता, प्रोवासंतरपइद्विता / / विमान त्रिप्रतिष्ठित (तीन आधारों से अवस्थित) कहे गये हैं-घनोदधि-प्रतिष्ठित, घनवातप्रतिष्ठित और अवकाशान्तर-(आकाश-) प्रतिष्ठित (368) / ३६६-तिविधा विमाणा पण्णता, तं जहा–अवट्टिता, वेउब्धिता, पारिजाणिया // विमान तीन प्रकार के कहे गये हैं१. अवस्थित–स्थायी निवास वाले। 2. वैक्रिय--भोगादि के लिए बनाये गए / - 3. पारियानिक-मध्यलोक में आने के लिए बनाए गए। दृष्टि -सूत्र ३७०-तिविधा रइया पण्णता, तं जहा-सम्मादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्टी। ३७१-एवं विलिदियवज्जं जाव वेमाणियाणं // नारकी जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं—सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि (370) / इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर सभी दण्डकों में तीनों प्रकार की दृष्टिवाले जीव जानना चाहिए (371) / दुर्गति-सुगति-सूत्र __३७२-तओ दुग्गतीनो पण्णत्तामो, तं जहा–णेरइयदुगती, तिरिक्खजोणियदुग्गती, मणुयदुग्गती // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org