________________ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 145 (द्वीन्द्रियादि) (326) / स्थावर जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं--पृथिवीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक (327) / विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में तेजस्कायिक और वायुकायिक को गति की अपेक्षा त्रस कहा गया है। पर उनके स्थावर नामकर्म का उदय है अत: वे वास्तव में स्थावर ही है। अच्छेद्य-आदि-सूत्र ३२८-तओ अच्छेज्जा पण्णता, त जहा-समए, पदेसे, परमाण / ३२६---एवमभेज्जा अडझा अगिज्झा अणड्डा प्रमझा अपएसा [तो अभेज्जा पण्णत्ता, तं जहा—समए, पदेसे, परमाणू / ३३०-तमो अणज्झा पण्णता, तं जहा–समए, पदेसे, परमाणू / ३३१-तओ प्रगिज्झा पण्णत्ता, त जहा-समए, पदेसे, परमाणू / ३३२-तो अणड्डा पण्णत्ता, त जहा-समए, पदेसे, परमाणू / ३३३–तम्रो प्रमझा पण्णता, त जहा-समए, पदेसे, परमाणू / ३३४–तम्रो अपएसा पण्णत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू] / ३३५-तमो अविभाइमा पण्णता, त जहा-समए, पदेसे, परमाणू / तीन अच्छेद्य (छेदन करने के अयोग्य) कहे गये हैं-समय (काल का सबसे छोटा भाग) प्रदेश (आकाश आदि द्रव्यों का सबसे छोटा भाग) और परमाणु (पुद्गल का सबसे छोटा भाग) (328) / इसी प्रकार अभेद्य, अदाह्य, अग्राह्य, अनर्ध, अमध्य, और अप्रदेशी / यथा-तीन अभेद्य (भेदन करने के अयोग्य) कहे गये हैं-समय, प्रदेश और परमाणु (326) / तीन अदाह्य (दाह करने के अयोग्य) कहे गये हैं-समय, प्रदेश और परमाण (330) / तीन अग्राह्य (ग्रहण करने के अयोग्य) कहे गये हैं-समय, प्रदेश और परमाणु (331) / तीन अनर्ध (अर्ध भाग से रहित) कहे गये हैंसमय, प्रदेश और परमाणु (332) / तीन अमध्य (मध्य भाग से रहित) कहे गये हैं—समय, प्रदेश और परमाणु (333) / तीन अप्रदेशी (प्रदेशों से रहित) कहे गये हैं-समय, प्रदेश और परमाणु (334) / तीन अविभाज्य (विभाजन के अयोग्य) कहे गये हैं -समय, प्रदेश और परमाणु (335) / दुःख-सूत्र ३३६-प्रज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं क्यासीकिभया पाणा समणाउसो ? गोतमादी समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदति गमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी---णो खलु वयं देवाणुप्पिया! एयम? जाणामो वा पासामो वा / त जदि णं देवाणुप्पिया! एयमणो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयम8 जाणित्तए। अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे प्रामंतेत्ता एवं क्यासी-दुक्खभया पाणा समणाउसो! से णं भंते ! दुक्खे केण कडे ? जीवेणं कडे पमादेणं / से णं भंते ! दुक्खे कहं वेइज्जति ? अप्पमाएणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org