________________ 144 ] [ स्थानाङ्गसूत्र जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं -प्रत्येकशरीरी (एक शरीर का स्वामी एक जीव) साधारणशरीरी (एक शरीर के स्वामी अनन्त जीव) और न प्रत्येकशरीरी न साधारणशरीरी (सिद्ध)। अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं--सूक्ष्म, बादर और न सूक्ष्म न बादर (सिद्ध)। अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं संज्ञी (समनस्क) असंज्ञी (अमनस्क) और न संज्ञी, न असंज्ञी (सिद्ध)। अथवा सर्व जीव तीन प्रकार कहे गये हैं-भव्य, अभव्य और न भव्य, न अभव्य (सिद्ध) (318) / लोकस्थिति-सूत्र ३१६—तिविधा लोगठिती पण्णत्ता, तं जहा-मागासपइट्ठिए वाते, वातपइट्ठिए उदही, उदहीपइट्ठिया पुढवी। लोक-स्थिति तीन प्रकार की कही गई है- आकाश पर घनवात तथा तनुवात प्रतिष्ठित है / घनवात और तनुवात पर घनोद प्रतिष्ठित है और घनोदधि पृथ्वी (तमस्तमःप्रभा आदि) पर प्रतिष्ठित-स्थित है। दिशा-सूत्र ३२०–तो दिसाम्रो पण्णत्तायो, तं जहा-उड्डा, अहा, तिरिया। ३२१-तिहि दिसाहि जीवाणं गतो पवत्तति-उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। ३२२-एवं तिहिं दिसाहि जीवाण-प्रागती, वक्कंती, पाहारे, वुड्डी, णिवड्डी, गतिपरियाए, समुग्धाते, कालसंजोंगे, दसणाभिगमे, णाणाभिगमे जीवाभिगमे [पण्णत्ते, त जही-उडाए, अहाए, तिरियाए] / 323 -तिहिं दिसाहि जीवाणं अजीवाभिगमे पण्णत्ते, तं जहा-उड्डाए, अहाए, तिरियाए। ३२४-एवं--पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं / ३२५---एवं मणुस्साणवि / दिशाएं तीन कही गई हैं ऊर्ध्वदिशा, अधोदिशा और तिर्यग्दिशा (320) / तीन दिशाओं में जीवों की गति (गमन) होती है-ऊर्ध्वदिशा में, अधोदिशा में और तिर्यग्दिशा में (321) / इसी प्रकार तीन दिशाओं से जीवों की आगति (आगमन) अवक्रान्ति (उत्पत्ति) आहार, वृद्धि निवृद्धि (हानि) गति-पर्याय, समुद्धात, कालसंयोग, दर्शनाभिगम (प्रत्यक्ष दर्शन से होने वाला बोध) ज्ञानाभिगम (प्रत्यक्षज्ञान के द्वारा होने वाला बोध) और जीवाभिगम (जीव-विषयक बोध) कहा गया है (322) / तीन दिशाओं में जीवों का अजीवाभिगम कहा गया है--ऊर्ध्व दिशा में, अधोदिशा में और तिर्य ग्दिशा में (323) / इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिवाले जीवों की गति, आगति आदि तीनों दिशाओं में कही गई है (324) / इसी प्रकार मनुष्यों की भी गति, आगति आदि तीनों ही दिशानों में कही गई है (325) / बस-स्थावर-सूत्र ३२६–तिविहा तसा पण्णत्ता, त जहा-तेउकाइया, वाउकाइया, उराला तसा पाणा / ३२७–तिविहा थावरा पण्णता, त जहा-पुढविकाइया, पाउकाइया, वणस्सइकाइया। त्रसजीव तीन प्रकार के कहे गये हैं तेजस्कायिक, वायुकायिक और उदार (स्थूल) त्रसप्राणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org