________________ 118] / स्थानाङ्गसूत्र १३२–तो लोगे समा सक्खि सपडिदिसि पण्णत्ता, त जहा-सोमंतए णं णरए, समयक्खेत्ते, ईसीपब्भारा पुढवी। पन: लोक में तीन समान (प्रमाण की दृष्टि से पैंतालीस लाख योजन विस्तीर्ण) सपक्ष और सप्रतिदिश कहे गये हैं-सीमन्तक (नामक प्रथम पृथिवी में प्रथम प्रस्तर का) नारकावास, समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र-अढाई द्वीप) और ईषत्प्राग्भारपृथ्वी (सिद्धशिला) (132) / समुद्र-सूत्र १३३---तनो समुद्दा पगईए उदगरसा पण्णत्ता, तंजहा-कालोदे, पुक्खरोदे, सयंभुरमणे। १३४–तम्रो समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णता, त जहा-लवणे, कालोदे, सयंभुरमणे / तीन समुद्र प्रकृति से उदक रसवाले (पानी जैसे स्वाद वाले) कहे गये हैं—कालोद, पुष्करोद और स्वयम्भूरमण समुद्र (133) / तीन समुद्र बहुत मत्स्यों और कछुओं आदि जलचरजीवों से व्याप्त कहे गये हैं-लवणोद, कालोद और स्वयम्भूरमण समुद्र (अन्य समुद्रों में जलचर जीव थोड़े हैं) (134) / उपपात-सूत्र . १३५--तम्रो लोगे णिस्सीला णिवता णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा प्रसत्तमाए पुढवीए प्रप्पतिढाणे गरए रइयत्ताए उववज्जति, जहा-रायाणो, मंडलीया, जे य महारंभा कोडुबी। १३६–तम्रो लोए सुसोला सुव्वया सगुणा समेरा सपच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्ध विमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, त जहारायाणो परिचत्तकामभोगा, सेणावती, पसत्थारो।। __ लोक में ये तीन पुरुष-यदि शील-रहित, व्रत-रहित, निर्गुणी, मर्यादाहीन, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास से रहित होते हैं तो काल मास में काल करके नीचे सातवीं पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नारकावास में नारक के रूप से उत्पन्न होते हैं-राजा लोग (चक्रवर्ती और वासुदेव) माण्डलिक राजा और महारम्भी गृहस्थ जन (135) / लोक में ये तीन पुरुष जो सुशील, सुव्रती, सगुण, मर्यादावाले, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास करने वाले हैं-वे काल मास में काल करके सर्वार्थसिद्ध-नामक अनत्तर विमान में देवता के रूप से उत्पन्न होते हैं--काम-भोगों को त्यागने वाले (सर्वविरत) जन, राजा, सेनापति और प्रशास्ता (जनशासक मंत्री आदि या धर्मशास्त्रपाठक) जन (136) / विमान-सूत्र १३७-बंभलोग-लंतएस णं कप्पेसु विमाणा तिवण्णा पण्णत्ता, त जहा---किण्णा, णीला, लोहिया। ब्रह्मलोक और लान्तक देवलोक में विमान तीन वर्णवाले कहे गये हैं--कृष्ण, नील और लोहित (लाल)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org