SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104] [ स्थानाङ्गसूत्र चौथे आदि भाग को लेकर कार्य करते हैं, उन्हें भाइल्लक, भागी या भागीदार कहते हैं। वर्तमान में दासप्रथा समाप्तप्रायः है, दैनिक या मासिक वेतन पर काम करने वाले या खेती व्यापार में भागीदार बनकर काम करने वाले हो पुरुष अधिकतर पाये जाते हैं / मत्स्य-सूत्र ३६–तिविहा मच्छा पण्णत्ता, तं जहा- अंडया, पोयया, संमुच्छिमा। ३७--अंडया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, त जहा-इस्थी, पुरिसा, गपुसगा। 38 -पोतया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, त जहा—इत्थी, पुरिसा, पसगा। मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं-अण्डज (अंडे से उत्पन्न होने वाले) पोतज (विना आवरण के उत्पन्न होने वाले) और सम्मूर्छिम (इघर उधर के पुद्गल-संयोगों से उत्पन्न होने वाले) (36) / अण्डज मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुसक वेद वाले (37) / पोतज मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुसक वेदवाले / (संमूछिम मत्स्य नपुसक ही होते हैं) (38) / पक्षि-सूत्र ३६-तिविहा पक्खी पण्णत्ता, त जहा-अंडया, पोयया, संमच्छिमा। ४०--अंडया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, त जहा- इत्थी, पुरिसा, णांसगा। ४१-पोयया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, त जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं—अण्डज, पोतज और सम्मूच्छिम (36) / अण्डज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुसक वेदवाले (40) / पोतज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेदवाले (41) / परिसर्प-सूत्र ४२–एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरिसप्पा वि भाणियव्वा, भुजपरिसप्पा वि [तिविहा उरपरिसप्पा पण्णत्ता, त जहा-अंडया, पोयया, संमुच्छिमा। ४३–अंडया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, पसगा। ४४--पोयया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, त जहा—इत्थी, पुरिसा, गपुसगा। ४५-तिविहा भुजपरिसप्पा पण्णत्ता, तजहा-अंडया, पोयया, संमुच्छिमा। ४६–अंडया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, त जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुसगा। 47- पोयया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, त जहा–इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा] / इसी प्रकार उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प का भी कथन जानना चाहिए / [उर-परिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं- अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम (42) / अण्डज उर-परिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुसक वेदवाले (43) / पोतज उरपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैंस्त्री, पुरुष और नपुसक वेदवाले (44) / भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं—अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम (45) / अण्डज भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेद वाले (46) / पोतज भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुसक वेदवाले (47) / ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy