________________ तृतीय स्थान-प्रथम उद्देश / [ 103 पुरुषजात-सूत्र २६-तो पुरिसज्जाया पण्णत्ता, त जहा–णामपुरिसे, ठवणपुरिसे, दज्वपुरिसे / ३०–तम्रो पुरिसज्जाया पण्णत्ता, त जहा–णाणयुरिसे, दंसणपुरिसे, चरित्तपुरिसे / ३१---तो पुरिसज्जाया पण्णत्ता, त जहा-वेदपुरिसे, चिधपुरिसे, अभिलावपुरिसे / ३२-तिविहा पुरिसा पण्णत्ता, त जहाउत्तमपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, जहण्णपुरिसा। ३३--उत्तमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, त जहाधम्मपुरिसा, भोगपुरिसा, कम्मपुरिसा। धम्मपुरिसा अरहंता, भोगपुरिसा चक्कवट्टी, कम्मपुरिसा वासुदेवा / ३४–मज्झिमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तजहा-उग्गा, भोगा, राइण्णा। ३५–जहण्णपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, त जहा-दासा, भयगा, भाइल्लगा। पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-नामपुरुष, स्थापनापुरुष और द्रव्यपुरुष (26) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-ज्ञानपुरुष, दर्शनपुरुष और चारित्रपुरुष (30) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं वेदपुरुष, चिह्नपुरुष और अभिलापपुरुष (31) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं- उत्तमपुरुष, मध्यम पुरुष और जघन्य पुरुष (32) उत्तम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं.---- धर्मपुरुष (अरहन्त) भोगपुरुष (चक्रवर्ती) और कर्मपुरुष (वासुदेव) (33) / मध्यम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--उग्र, भोग और राजन्य (34) जघन्य पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—दास, भृतक और भागीदार (35) / विवेचन-उक्त सूत्रों में कहे गये विविध प्रकार के पुरुषों का स्पष्टीकरण इस प्रकार हैनामपुरुष-जिस चेतन या अचेतन वस्तु का 'पुरुष' नाम हो वह / स्थापनापुरुष-पुरुष की मूर्ति या जिस किसी अन्य वस्तु में 'पुरुष' का संकल्प किया हो वह / द्रव्यपुरुष-पुरुष रूप में भविष्य में उत्पन्न होने वाला जीव या पुरुष का मृत शरीर / दर्शनपुरुष-विशिष्ट सम्यग्दर्शन वाला पुरुष / चारित्रपुरुष--विशिष्ट चारित्र से संपन्न पुरुष / वेदपुरुष--पुरुष वेद का अनुभव करने वाला जीव / चिह्नपुरुष-दाढ़ी-मूछ आदि चिह्नों से युक्त पुरुष / अभिलापपुरुष-लिंगानुशासन के अनुसार पुल्लिग द्वारा कहा जाने वाला शब्द / उत्तम प्रकार के पुरुषों में भी उत्तम धर्मपुरुष तीर्थंकर अरहन्त देव होते हैं / उत्तम प्रकार के मध्यम पुरुषों में भोगपुरुष चक्रवर्ती माने जाते हैं और उत्तम प्रकार के जघन्यपुरुषों में कर्मपुरुष वासुदेव नारायण कहे गये हैं। ___ मध्यम प्रकार के तीन पुरुष उग्र, भोग या भोज और राजन्य हैं / उग्नवंशी या प्रजा-संरक्षण का कार्य करने वालों को उग्रपुरुष कहा जाता है। भोग या भोजवंशी एवं गुरु, पुरोहित स्थानीय पुरुषों को भोग या भोज पुरुष कहा जाता है। राजा के मित्र-स्थानीय पुरुषों को राजन्य पुरुष कहते हैं। ___ जघन्य प्रकार के पुरुषों में दास, भृतक और भागीदार कर्मकर परिगणित हैं / मूल्य से खरीदे गये सेवक को दास कहा जाता है। प्रतिदिन मजदूरी लेकर काम करने वाले मजदूर को या मासिक वेतन लेकर काम करने वाले को भृतक कहते हैं / तथा जो खेती, व्यापार आदि में तीसरे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org