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________________ 72] [स्थानाङ्गसूत्र विहरंति, तं जहा-देवकुराए चेव, उत्तरकुराए चेव। 317 - जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसममुत्तमं इड्डि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-हरिवासे चेव, रम्मगवासे चेव / ३१८--जंबुद्दोवे दोवे दोसु वासेसु मणुधा सया सुसमदूसममुत्तममिड्डि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-हेमवए चेव, हेरण्णवए चेव / 316- जंबुद्दीवे दीवे दोसु खेत्तेसु मणुया सया दूसमसुसममुत्तममिडि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-पुम्वविदेहे चव, प्रवरविदेहे चेव / ३२०-जंबुद्दीवे दोबे दोसु वासेसु मणुया छन्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-भरहे चव, एरवते चव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण और उत्तर के देवकुरु और उत्तरकुरु में रहने वाले मनुष्य सदा सुषम-सुषमा नामक प्रथम आरे की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं (316) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में हरिक्षेत्र और उत्तर में रम्यक क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य सदा सुषमा नामक दूसरे आरे की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं (317) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में हैमवत क्षेत्र में और उत्तर के हैरण्यत क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य सदा सुषम-दुषमा नाम तीसरे पारे की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं (318) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व में पूर्व विदेह और पश्चिम में अपर-(पश्चिम--) विदेह क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य सदा दुषम-सुषमा नामक चौथे आरे को उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं (316) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में भरत क्षेत्र और उत्तर में ऐरवत क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य छहों प्रकार के काल का अनुभव करते हुए विचरते हैं (320) / चन्द्र-सूर्य-पद 321- जंबुद्दीवे दो-दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा। ३२२-दो सूरिआ तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में दो चन्द्र प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे (321) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे (322) / नक्षत्र-पद ३२३-दो कित्तियानो, दो रोहिणीग्रो, दो मग्गसिरानो, दो अदालो, दो पुणध्वसू, दो पूसा, दो अस्सलेसानो, दो महायो, दो पुव्वाफग्गुणीग्रो, दो उत्तराफग्गुणीसो, दो हत्था, दो चित्तायो, दो साईओ, दो विसाहायो, दो अणुराहाओ, दो जेट्टायो, दो मूला, दो पुवासाढायो, दो उत्तरासाढायो, दो अभिईश्रो, दो सवणा, दो धणिद्वानो, दो सयभिसया, दो पुव्वाभवयानो, दो उत्तराभद्दवयाओ, दो रेवतीओ, दो अस्सिणीनो, दो भरणीयो, [जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा?] जम्बूद्वीपनामक द्वीप में दो कृत्तिका, रोहिणी, दो मृगशिरा, दो आर्द्रा, दो पुनर्वसू, दो पुष्य, दो अश्लेषा, दो मघा, दो पूर्वाफाल्गुणी, दो उत्तराफाल्गुणी, दो हस्त, दो चित्रा, दो स्वाति, दो विशाखा, दो अनुराधा, दो ज्येष्ठा, दो मूल, दो पूर्वाषाढा, दो उत्तराषाढा, दो अभिजित, दो श्रवण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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