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________________ 68] [ स्थानाङ्गसूत्र अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वहाँ महान् ऋद्धिवाली यावत् एक पल्योपमकी स्थितिवाली दो देवताएं रहती हैं—पद्मद्रह में श्री और पौण्डरीकद्रह में लक्ष्मी / २८८–एवं महाहिमवंत-रुप्पोसु वासहरपव्वएसु दो महदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव तं जहा--महापउमद्दहे चव, महापोंडरीयहहे चव / तत्थ णं दो देवयानो हिरिच्चेव, बुद्धिच्चेव। इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मी वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं, जो क्षेत्रप्रमाण की दष्टि से सर्वथा सदश हैं. यावत वे अायाम. विष्कम्भ. उध. संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वहाँ दो देवियाँ रहती हैं-महापद्मद्रह में ह्री और महापौण्डरीक द्रह में बुद्धि / २८६-एवं-णिसढ-गीलवंतेसु तिगिछद्दहे चे व, केसरिइहे चेव / तत्थ णं दो देवताओ धिती चव, कित्ती चव। इसी प्रकार निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं, जो क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् वे आयाम, विष्कम्भ, उद्वध संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं / वहाँ दो देवियाँ रहती हैं-तिगिछिद्रह के धृति और केसरीद्रह में कीति। महानदी-पद २६०-जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स दहिणे णं महाहिमवंतानो वासहरपब्वयाओ महापउमद्दहाओ दहाओ दो महाणईश्रो पवहंति, त जहा--रोहियच्च व, हरिकंतच्च व / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के महापद्मद्रह से रोहिता और हरिकान्ता नाम की दो महानदियां प्रवाहित होती हैं / २६१-एवं-णिसढानो वासहरपव्वयानो तिगिछदहानो दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा-हरिच्च व, सीतोदच्च व / इसी प्रकार निषध वर्षधर पर्वत के तिगिछद्रह नामक महाद्रह से हरित और सीतोदा नामकी दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं। २६२-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंतानो वासहरपन्वताओ केसरिदहाओ दहाम्रो दो महाणईप्रो पवहंति, त जहा-सीता चे व, णारिकता चव / जम्बूद्वीपनामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत के केसरीनामक महाद्रह से सीता और नारीकान्ता नामकी दो महानदियां प्रवाहित होती हैं। ___२६३-एवं-रुप्पीओ वासहरपव्वताओ महापोंडरीयद्दहाओ दहाम्रो दो महाणईओ पवहंति, तं जहा—णरकता चे व, रुप्पकूला चेव / For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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