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________________ द्वितीय स्थान--तृतीय उद्देश ] [ 67 बहुसमतुल्ला जाव त जहा–णीलवंतकूडे चे व, उवदंसणकूडे चेव / २८५-एवं-रुपिमि वासहरपच्चए दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव त जहा–रुप्पिकूडे चेव, मणिकंचणकटे चेव / २८६-एवं-सिहरिमि वासहरपन्वते दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव त जहा–सिहरिफूडे चव, तिगिछकूडे चे के। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत से दक्षिण में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत से ऊपर दो कूट (शिखर) कहे गये हैं-चुल्ल हिमवत्कट और वैश्रमणकूट / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (281) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत से दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट कहे गये हैं-महाहिमवत्कूट और वैडूर्यकूट / वे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, पायामविष्कम्भ, उच्चत्व, यावत् संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (282) / इसी प्रकार जम्बूद्वीपनामक द्वीप के मन्दर पर्वत के दक्षिण निषध पर्वत के ऊपर दो कूट कहे गये हैं-निषध कूट और रुचकप्रभ कूट / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान, और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (283) / जम्बूद्वीपनामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में नीलवन्त वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट कहे गये हैं-नीलवन्त कूट और उपदर्शन कूट / वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (284) / इसी प्रकार जम्बूद्वीपनामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में रुक्मी वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कट हैं-रुक्मी कट और मणिकांचन कट। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दष्टि से सर्वथा सदश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि को अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (285) / इसी प्रकार जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उसर में शिखरी वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट हैं-शिखरी कुट और तिगिछ कूट / वे दोनों क्षेत्रप्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं-यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (286) / महाद्रह-पद २८७-जंबद्दीबे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं चुल्लहिमवंत-सिहरीसु वासहरपव्वएसु दो महदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्ट ति आयामविक्खंभ-उन्वेह-संठाण-परिणाहेणं, त जहा-पउमद्दहे चव, पोंडरीयदृहे चव। तत्थ णं दो देवयानो महिट्टियानो जाव पलिप्रोवमद्वितीयानो परिवति त जहा–सिरी चव, लच्छी चव। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर पद्मद्रह (पद्मह्रद) और उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत पर पौण्डरीक द्रह (ह्रद) कहे गये हैं। वे दोनों क्षेत्रप्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं; उनमें कोई विशेषता नहीं है। कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है। वे आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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