________________ [स्थानाङ्गसूत्र पश्चिम पार्श्व में माल्यवत् नाम के दो वक्षार पर्वत कहे गये हैं। वे अश्व-स्कन्ध में सदश (आदि में नीचे और अन्त में ऊंचे) तथा अर्धचन्द्र के आकार से अवस्थित हैं। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (277) / २७८-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो दीहवेयड्डपव्वया पण्णताबहुसमतुल्ला जाव तं जहा–भारहे चे व दोहवेयड्डे, एरवते व दोहवेयड्ढे / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो दीर्घ वैताढय पर्वत कहे गये हैं। ये क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। उनमें से एक दीर्घ वैताढच भरत क्षेत्र में है और दूसरा दीर्घ वैताढय ऐरवत क्षेत्र में है (278) / गुहा-पद २७९-भारहए णं दोहवेयड्ड दो गुहाम्रो पण्णतामो-बहुसमतुल्लाओ अविसेसमणाणत्तानो अण्णमण्णं णातिवदृति प्रायाम विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा-तिमिसगुहा चव, खंडगप्पवायगुहा चव / तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव पलिनोवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा—कयमालए चेव, गट्टमालए चेव / २८०-एरवए गं दोहवेयड्ड दो गुहाम्रो पण्णत्ताओ जाव तं जहा—कयमालए चेव, गट्टमालए चे व। भरत क्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वत में तमिस्रा और खण्डप्रपात नामकी दो गुफाएं कही गई हैं। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, उनमें परस्पर कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि में उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं / उनमें महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं तमिस्रा में कृतमालक देव और खण्डप्रपात गुफा में नृत्तमालक देव (286) / ऐरवत क्षेत्र के दीर्घ वैताढय पर्वत में तमिस्रा और खण्डप्रपात नाम की दो गुफाएं कही गई हैं। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदश हैं, यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं। उनमें महात् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं-तमिस्रा में कृतमालक और खण्डप्रपात गुफा में नृत्तमालक देव (280) / कूट-पद २८१-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, त जहा-चुल्लहिमवंतकडे चव, वेसमणकूडे च व। २८२-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाणे महाहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव त जहा-महाहिमवंतकूडे चव, बेरुलियकूडे चे व / २८३---एवंणिसढे वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव त जहा-णिसढकडे च व, रुयगप्पभे चव / २८४-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंते वासहरपक्वए दो कूडा पण्णत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org