________________ द्वितीय स्थान-प्रथम उद्देश ] [33 स्थानों को जाने और छोड़े बिना पात्मा सम्पूर्ण संयम से संयुक्त नहीं होता (45) / प्रारम्भ और परिग्रह---इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा सम्पूर्ण संवर से संवत नहीं होता (46) / प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान को उत्पन्न अर्थात् प्राप्त नहीं कर पाता (47) / प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध श्रु तज्ञान को उत्पन्न नहीं कर पाता (48) / प्रारम्भ और परिग्रह--इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को उत्पन्न नहीं कर पाता (46) / प्रारम्भ और परिग्रह--इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध मनःपर्यवज्ञान को उत्पन्न नहीं कर पाता (50) / प्रारम्भ और परिग्रह--इन दो स्थानों को जाने और छोड़े विना आत्मा विशुद्ध केवलज्ञान को उत्पन्न नहीं कर पाता (51) / आरम्म-परिग्रह-परित्याग-पद ५२-दो ठाणाई परियाणेत्ता पाया केलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, त जहा-प्रारंभ चेव, परिग्गहे चेव / ५३–दो ठाणाइं परियाणेता पाया केवलं बोधि बुज्झज्जा, तजहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव / ५४–दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं मडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइज्जा, त जहा—प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव / ५५-दो ठाणाई परियाणेत्ता प्राया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, त जहा---प्रारंभे चेक, परिग्गहे चेव / ५६–दो ठाणाइं परियाणेत्ता प्राया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा-प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव। ५७-दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तजहा-प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव / ५८—दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, त जहा–आरंभे चेव, परिग्गहे चेव / ५६-दो ठाणाई परियाणेत्ता प्राया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, त जहा-प्रारंभे चेव, परिगहे चव। ६०-दो ठाणाई परियाणेत्ता पाया केवलं प्रोहिणाणं उप्याडेज्जा, तजहा-प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव / ६१-दो ठाणाइं परियाणेत्ता प्राया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, त जहा-प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव / ६२-दो ठाणाई परियाणेत्ता प्राया केवलं केवलणाणं उप्पाडेजा, जहाआरंभे चेव, परिग्गहे चैव। प्रारम्भ और परिग्रह - इन दो स्थानों को ज्ञपरिज्ञा से जानकर और प्रत्याख्यानपरिज्ञा से त्यागकर आत्मा केवलि-प्रज्ञप्त धर्म को सुन पाता है (52) / प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर आत्मा बिशुद्धबोधि का अनुभव करता है (53) / प्रारम्भ और परिग्रह--- इन दो स्थानों को जानकर और त्याग कर आत्मा मुण्डित होकर और गृहवास का त्याग कर सम्पूर्ण अनगारिता को पाता है (54) / प्रारम्भ और परिग्रह इन दो स्थानों को जानकर और त्याग कर आत्मा सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास को प्राप्त करता है (55) / प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्याग कर आत्मा सम्पूर्ण संयम से संयुक्त होता है (56) प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर प्रात्मा सम्पूर्ण संवर से संवत होता है (57) प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्याग कर आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान को उत्पन्न (प्राप्त करता है (58) / प्रारम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्याग कर आत्मा विशुद्ध श्रु त ज्ञान को उत्पन्न करता है (56) / आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर प्रात्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को उत्पन्न करता है (60) / प्रारम्भ और परिग्रह-इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org