________________ 404 आचारांग सूत्र-द्वितीय शु तस्कन्ध (3) आदान-भाण्ड-मात्र निक्षेपणासमिति से युक्त हो, (4; मनःसमिति से युक्त हो, (5) वचन समिति से युक्त हो। तत्त्वार्थ सूत्र में अहिंसा महाव्रत की पांच भावनाओं का क्रम इस प्रकार है-१. वचनगुप्ति, 2. मनोगुप्ति, 3. ईर्यासमिति, 4. आदान निक्षेपण समिति और 5. आलोकित पानभोजन / द्वितीय महाव्रत और उसको पाँच भावना 780. अहावरं दोच्चं भंते !] महव्ययं पच्चक्खामि सव्वं मुसाबायं वदोस / से कोहा वा लोभा वा भया वा हासा वा णेव सयं मुसं भासेज्जा, णेवण्णणं मुसं भासावेज्जा अण्णपि मसं भासंतं ण समणुजाणेज्जा तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा। तस्स भंते ! पडिक्कमामि जाव बोसिरामि। 781. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति - [1] तत्थिमा पढमा भावणा अणुवीय भासी से जिग्गंथे, णो अणणुवीय भासी / केवली बूया-अणणुवोयि भासी से णिग्गंथे समावज्जेज्ज मोसं वयणाए / अणुवीयि भासी से निग्गंथे, जो अणणुवीयि भासि ति पढमा भावणा। [2] अहावरा दोच्चा भावणा कोधं परिजाणति से निग्गंथे, णो कोधणे सिया। केवली बूया-कोधपत्ते कोही समावदेज्जा मोसं वयणाए। कोधं परिजाणति से निम्नथे, णो य कोहपाए सि [य] त्ति दोच्चा भावणा। [3] अहावरा तच्चा भावणा -लोभं परिजाणति से णिग्गंथे, णो य लोभणाए" सिया। केवली बूया-लोभपत्त लोभी समाववेज्जा मोसं वयणाए / लोभं परिजाणति से णिग्गंथे, णो य लोभणाए सि [य] त्ति तच्चा भावणा / [4] अहावरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणति से निग्गंथे, णो य भयभीरुए सिया। 1. आवारांग चूणि मू० पा० टि० पृ० २७६...."ईरियासमिए से निग्गथे..", आलोइय पाण भोयणभोयी से निग्गंथे."आदाण-भंडमत्त-निक्खेवणासमिए से निम्गथे..", मणसमिए से निग्गथे...व इसमिए से निर्मथे...।' 2. वाङ मनोगुप्तोर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकित-पान-भोजनानि पंच। तत्वार्थ० अ०७/८ म. आ० 337 3. दशवकालिक सूत्र 3-4 के पाठ से तुलना कीजिए। 4. 'पच्चक्खामि' के बदले पाठान्तर है-'पच्चाइक्खामि / ' 5. 'समाजाणेज्जा' के बदले पाठान्तर है---'समणुमन्ने / ' 6. 'तिविहेण' के बदले 'तिविह' पाठान्तर है। 7. 'वयसा के बदले पाठान्तर है—'बायसा' 8. 'अणवीयि के बदले पाठान्तर है-'अणवीयो।' अर्थ समान है। 6. 'कोधपत्ते के बदले पाठान्तर है--'कोधपत्ते' 10. 'कोहणाहे के बदले पाठान्तर है-कोहणए' 11. 'लोभणाएं' के बदले पाठान्तर है-लोभणए / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org