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________________ पन्द्रहवाँ अध्ययन : सूत्र 755-65 387 765. तत-विततं घण-असिरं आतोजं चउविहं' बहुविहीयं / वाएंति तत्थ देवा बहूहि आणट्टगसएहिं // 127 // 755. जरा-मरण से विमुक्त जिनवर महावीर के लिए शिविका लाई गई, जो जल और स्थल पर उत्पन्न होने वाले दिव्यपुष्पों और देव वैक्रियलब्धि से निर्मित पुष्पमालाओं से युक्त थी // 117 // 756. उस शिविका के मध्य में दिव्य तथा जिनवर के लिए श्रेष्ठ रत्नों की रूपराशि से चर्चित (सुसज्जित) तथा पादपीठ से युक्त महाल्यवान् सिंहासन बनाया गया था // 118 / / 757. उस समय भगवान महावीर श्रेष्ठ आभूषण धारण किये हुए थे, यथास्थान दिव्य माला और मुकुट पहने हुए थे, उन्हें क्षौम (कपास से निर्मित) वस्त्र पहनाए हुए थे, जिसका मूल्य एक लक्ष स्वर्णमुद्रा था। इन सबसे भगवान् का शरीर देदीप्यमान हो रहा था / / 116 // 758. उस समय प्रशस्त अध्यवसाय से, षष्ठ भक्त प्रत्याख्यान (बेले की) तपश्चर्या से युक्त शुभ लेश्याओं से विशुद्ध भगवान् उत्तम शिविका (पालकी) में विराजमान हुए // 120 // 756. जब भगवान् सिंहासन(शिविका में स्थापित) पर विराजमान हो गए, तब शकेन्द्र और ईशानेन्द्र उसके दोनों ओर खड़े होकर मणि-रत्नादि से चित्र-विचित्र हत्थे-डंडे वाले चामर भगवान् पर ढुलाने लगे // 121 // ___760. पहले उन मनुष्यों ने उल्लासवश वह शिविका उठाई, जिनके रोमकूप हर्ष से विकसित हो रहे थे। तत्पश्चात् सुर, असुर, गरुड़ और नागेन्द्र आदि देव उसे उठाकर ले चलने लगे // 122 / / 761. उस शिविका को पूर्वदिशा की ओर से सुर (वैमानिक देव) उठाकर ले चलते हैं, जबकि असुर दक्षिणदिशा की ओर से, गरुड़देव पश्चिम दिशा की ओर से और नागकुमार देव उत्तर दिशा की ओर से उठाकर ले चलते है // 123 / / 762. उस समय देवों के आगमन से आकाशमण्डल वैसा ही सुशोभित हो रहा था, जैसे खिले हुए पुष्पों से वनखण्ड (उद्यान), या शरत्काल में कमलों के समूह से पद्भ सरोवर सुशोभित होता है / / 124 / / ____763. उस समय देवों के आगमन से गगनतल भी वैसा ही सुहावना लग रहा था, जैसे सरसों, कचनार या कनेर या चम्पकवन फूलों के झुड से सुहावना प्रतीत होता है / / 12 / / 764. उस समय उत्तम ढोल, भेरी, झांझ (झालर), शंख आदि लाखों वाद्यों का का स्वर-निनाद गगनतल और भूतल पर परम रमणीय प्रतीत हो रहा था // 126 // 1. 'चउविहं बहुविहियं के पाठान्तर है—'चउब्विहं बहुविहियं / ' अर्थ होता है --चार प्रकार के वाद्य ___ जो कि अनेक तरह से (बजाये)। 2. 'वाएंति' के बदले पाठान्तर हैं-वाइंति, बातेंति, वायति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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