________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध 765. वहीं पर देवगण बहुत-से शताधिक नृत्यों और नाटयों के साथ अनेक तरह के तत, वितत, धन और शुषिर, यों चार प्रकार के बाजे बजा रहे थे // 127 // विवेचन--देवों द्वारा दीक्षामहोत्सव का भव्य आयोजन --सू० 755 मे 765 तक की गाथाओं में देवों द्वारा भगवान के दीक्षा-महोत्सव के आयोजन का संक्षेप में वर्णन किया गया हैं / इसमें 8 बातों का मुख्यतया उल्लेख है -- (1) शिविका का लाना, (2) शिविका स्थित सिंहासन का वर्णन, (3) भगवान् के वस्त्राभूषणादि से सुसज्जित देदीप्यमान शरीर का वर्णन, (4) प्रशस्त अध्यवसाय- लेश्या-तपश्चर्या से विशुद्ध (पवित्रात्मा) भगवान शिविका में विराजमान हुए। (5) दो इन्द्रों द्वारा चामर दुलाये जाने लगे। (6) भक्तिवश मानव और देव चारों दिशाओं से पालकी उठाकर ले चले / (7) गगनमंडल की शोभा का वर्णन, (8) वाद्यनिनादों से गगनतल और भूतल गंज रहा था। (6) देवगण अनेक प्रकार के नृत्य, नाट्य आयन और वादन से वातावरण को रमणीय बना रहे थे।' 'उवणीया' आदि पदों के अर्थ-उवणीया-समीप लाई गई / ओसत्तमल्लदामा पुष्पमालाएं उसमें अवसक्त-लगी हई थीं। मझयारे मध्य में। 'वररयणरूवचइयं = श्रेष्ठ रत्नों के सौन्दर्य से चर्चित-शोभित था / महरिहं = महाघ--महंगा, बहुमूल्य / आलइयमालमउडो = यथास्थान माला और मुकुट पहने हुए थे। भासुर बोंदो-देदीप्यमान शरीर वाले / खोमयवस्थाणियत्थो सूती (कपास से निर्मित) वस्त्र पहने हए थे। उक्खित्ता= उठाई। साहट्ठरोमकूर्वहि-हर्ष से जिनके रोमकूप विकसित हो रहे थे। वहंति = उठाकर ले चले / सिद्धत्थवणं = सरसों का वन (क्षेत्र) कणियारवणं = कनेर का या कचनार का वन / सतसहस्सिएहि = लाखों, तुरणिणाओवाद्यों का स्वर / आतोज्ज = वाद्य / वाएंति = बजाते हैं। आणगसहि = सैकड़ों नृत्यों नाट्यों के साथ। अन्यत्र भी ऐसा ही वर्णन --आवश्यक भाष्य गा०६२ से 104 तक में ठीक इसी प्रकार का वर्णन मिलता है। सू० 760 की गाथा समवायांग सूत्र में भी मिलती है। सामायिक चारित्र ग्रहण 766. तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्प दसमीपक्खेणं, सुब्बतेणं दिवसेणं, विजएणं मुहत्तणं, हत्थुत्तरनक्ख 1. आचारांग मुलपाठ सटिप्पण पृ०२७०-२७१ 2. (क) पाइअ-सहमहण्णवो पृ० 176, 204, 668, 118, 3883 (ख) अर्थागम खण्ड --१--आचारांग पृ० 156 3. आवश्यक भाष्य गा० 62 से 104 तक 4. किसी किसी प्रति में 'मामसिरबहलस्स' के पूर्व 'तस्सणं' पाठ नहीं है। 5. 'महत्तणं, हत्थुत्तरनक्खत्तेणं' के बदले पाठान्तर है-'मूहत्ते णं हत्थत रानवखतेणं / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org