________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 743 (2) विवाह, (3) त्यागभाव और उदासीनता-पूर्वक पंचेन्द्रिय-काम-भोगों का उपभोग एवं उनका त्याग। दिगम्बर परम्परा भ० महावीर को अविवाहित मानती है। दिगम्बर ग्रन्थों में उनके लिए 'कुमार' शब्द का प्रयोग हुआ है, श्वेताम्बर परम्परा में भी उनके लिए कुमार शब्द प्रयुक्त हुआ है / वही संभवतः उन्हें अविवाहित मानने की धारणा का पोषक बना हो।' वस्तुत: 'कुमार' का अर्थ 'कुआरा' ----अविवाहित ही नहीं होता, उसका अर्थ राजकुमार, युवराज आदि भी होता है, इसी अर्थ को व्यक्त करने के लिए 'कुमारवासम्मि पम्वइया' कहकर 'कुमार' शब्द का प्रयोग किया गया है। भगवान् महावीर के विवाह के सम्बन्ध में आचारांग में ही नहीं, कल्पसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, भाष्य एवं चणि आदि प्राचीन साहित्य में पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। भगवान के प्रचलित तीन नाम 743. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं, तस्स णं इमे तिन्नि नामधेज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा-अम्मापिउसंतिए बद्धमाणे, सहसम्मुइए समणे, भीम भयभेरवं उरालं अचेलयं परीसहे सहति ति कट्ट, देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे। 743. काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान महावीर के ये तीन नाम इस प्रकार कहे गए है-- (1) माता-पिता का दिया हुआ नाम-वर्द्धमान, (2) समभाव में स्वाभाविक सन्मति होने के कारण श्रमण, और (3) किसी प्रकार का भयंकर भय-भैरव उत्पन्न होने पर भी अविचल रहने तथा अचेलक रहकर विभिन्न परीषहों को समभावपूर्वक (उदार होकर) सहने के कारण देवों ने उनका नाम रखा---'श्रमण भगवान् महावीर' / 1. (क) पद्मपुराण 30/67 / (ख) हरिवंश पुराण F0/218 भा०२॥ 2. (क) 'कुमारो युवराजेश्ववाहके'-शब्दरत्न ममन्वय कोष 10 268 / (ख) 'पाइअ-सद्दमहण्णवो' पृ० 253 / (ग) अमरकोष काण्ड 1, नाट्यवर्ग श्लोक 12 / (घ) आप्टे कुत संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी पृ. 363 / 3. (क) आवश्यक नियुक्ति पृ० 36 गा. 222 / 8. कल्पसूत्र में "भीमं भयभेरव" आदि पाठ विस्तृत रूप में है। देखिये कल्पसूत्र--१०४... 'अयले भयभे रवाणं परिसहोवसम्गाणं-खंतिखमे पडिमाणं पालए धीम अरति रतिसहे दविए वीरियसंपन्ने देवेहि से णाम कयं समणे भगवं महावीरे 3 / " 5. 'अचेलयं' के बदले पाठान्तर अचेले. 'अचले' मान कर चूर्णिकार ने अर्थ किया है-'अचले परिसहो वसग्गेहि / अर्थ होता है-परिसहोपसर्गों के समय अचल / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org