________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध विवेचन---तीन प्रचलित गुणनिष्पन्न नाम-प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर के तीन प्रचलित नाम किस कारण से पड़े ? इसका उल्लेख है। वर्द्धमान नाम तो माता-पिता के यहां धन-धान्य आदि में वृद्धि होने के कारण माता-पिता ने रखा था।' 'श्रमण' नाम प्रचलित होने का कारण यहां बताया है.-'सहसम्मुइए'। चूर्णिकार सहसम्मुदियाए' पाठ मानकर अर्थ करते हैं—'सोभणामतिःसन्मतिः, सन्मस्या सहगतः'-अच्छी बद्धि या सहज स्वाभाविक सन्मति के कारण। इसका अर्थ स्वाभाविक स्मरण-शक्ति के भी होता है। तात्पर्य यह है कि सहज शारीरिक एवं बौद्धिक स्फूर्ति एवं शक्ति रा उन्होंने तप आदि आध्यात्मिक साधना के मार्ग में कठोर श्रम किया, एतदथं वे श्रमण' कहलाए। तीसरा प्रचलित नाम 'महावीर' था, जो देवों के द्वारा रखा गया था। तीनों नाम गुणनिष्पन्न थे।' भगवान के परिवारजनों के नाम 744. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स पिता कासवगोत्तेणं / तस्स णं तिणि गामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा-सिद्धत्थे ति वा सेज्जसे ति वा जसंसे ति वा। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अम्मा वासिद्रसगोता। तीसे णं तिष्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा-तिसला इ वा विदेहदिग्णा इ वा पियकारिणी ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए सुपासे कासवगोत्तणं / समणस्स णं भगवतो महावीरस्स जेट्ठ भाया णंदिवद्धणे कासवगोत्रोणं / समणस्स णं भगवतो महावीरस्स जेट्टा भइणी सुदंसणा कासवगोत्रोणं / समणस्स णं भगवतो महावीरस्स भज्जा जसोया गोत्तेणं कोडिण्णा"। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स धूता कासवगोत्तेणं / तोसे गं दो नामधेज्जा एवमाहिज्जति; तंजहा-अणोज्जा ति वा पियदसणा ति वा। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णाई कोसियगोत्तेणं / तीसे गं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा--सेसवती ति वा जसवती ति वा। 1. कल्पसूत्र मूल (देवेन्द्र मुनि सम्पादित) पृ० 140 / 2. (क) आचारांग चूणि मू० पा० टि• पृष्ठ 264 / (ख) कल्पसूत्र (देवेन्द्र मुनि सम्पादित) पृ० 141 / 3. सूत्र-७४४ की तुलना कीजिए कल्पसूत्र सूत्र--१०५ से 106 तक / आवश्यक चूणि पृ०-२४४ / 4. 'पित्तियए' के बदले पाठान्तर है-पित्तिज्जे 5. किसी-किसी प्रति में 'जेठा भइणी' के बदले 'कणिठा भइणी' पाठ है। 6. 'कासव' के बदले यहाँ 'कासवी' पाठान्तर मिलता हैं। 7. 'गोतण कोडिण्णा' के बदले पाठान्तर हैं--कोडिन्ना मोत्तेण, गोयमा गोतेणं, से गोयमा गोत्तेणं / अर्थ अर्थ क्रमशः यों है-कौडिन्यागोत्र से थी, गोत्र से गौतमीया थी, वह गोतमगोत्रीया थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org