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________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 740 371 धणेणं धणेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अतीब अतीव परिवड्ढति, तो होउ णं कुमारे बद्धमाणे, ___74.. जब गे श्रमण भगवान् महावीर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में आए, तभी से उस कुल में प्रचुर मात्रा में चांदी, सोना, धन, धान्य, माणिक्य, मोती, शंख, शिला और प्रवाल (मूंगा) आदि की अत्यन्त अभिवृद्धि होने लगी। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर के माता-पिता ने यह बात जानकर भगवान् महावीर के जन्म के दस दिन व्यतीत हो जाने के बाद ग्यारहवें दिन अशुचि निवारण करके शुचीभूत होकर, प्रचुर मात्रा में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ बनवाए। चतुर्विध आहार तैयार हो जाने पर उन्होंने अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धि वर्ग को आमंत्रित किया। इसके पश्चात् उन्होंने बहुत शाक्य आदि श्रमणों, ब्राह्मणों, दरिद्रों, भिक्षाचरों, भिक्षाभोजी, शरीर पर भस्म रमाकर भिक्षा मांगने वालों आदि को भी भोजन कराया, उनके लिए भोजन सुरक्षित रखाया, कई लोगों को भोजन दिया, याचकों में दान बांटा। इस प्रकार शाक्यादि भिक्षाजीवियों को भोजनादि का वितरण करवा कर अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धिजन आदि को भोजन कराया। उन्हें भोजन कराने के पश्चात् उनके समक्ष नामकरण के सम्बन्ध में इस प्रकार कहा-जिस दिन से यह बालक त्रिशलादेवी की कुक्षि में गर्भरूप से आया, उसी दिन मे हमारे कुल में प्रचुर मात्रा में चांदी, सोना, धन, धान्य, माणिक, मोती, शंख, शिला, प्रवाल (मंगा) आदि पदार्थों की अतीव अभिवृद्धि हो रही है / अत: इस कुमार का गुण सम्पन्न नाम-'वर्द्धमान' हो, अर्थात् इसका नाम वर्द्ध मान रक्खा जाता है। विवेचन-भगवान् का गुण-निष्पन्न नामकरण-प्रस्तुत सूत्र में भगवान् का 'वर्द्धमान' नाम रखने का कारण बताया है। राजा सिद्धार्थ एवं महारानी त्रिशला दोनों अपने सभी इष्टस्वजन-परिजन-मित्रों तथा श्वसुर पक्ष के सभी सगे-सम्बन्धियों को भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं, साथ ही समस्त प्रकार के भिक्षाजीवियों को भी भोजन देते हैं। उसके पश्चात् सबके समक्ष अपना मन्तव्य प्रकट करते हैं और 'वर्द्ध नाम' नाम रखने का प्रबल कारण भी बताते हैं। __ इन सबसे प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में प्रायः सभी सम्पन्न वर्ग के लोग अपने शिशु का नामकरण समारोहपूर्वक करते थे, और प्रायः उसके किसी न किसी गुण को सूचित करने वाला नाम रखते थे। भगवान का संवर्तन 741. ततो पं समणे भगवं महावीरे पंचधातिपरिवडे, तंजहा-खीरधातीए, मज्जण 1. 'तो होउणं कुमारे वढमाणे' का समानार्थक पाठ कल्पसूत्र में इस प्रकार है-'तं होउ गं कुमारे ___ वडमाणे 2 नामेणं / ' 2. आचारांग सूत्र मूलपाठ, वृत्ति पत्रांक 425 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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