________________ // तइया चूला // पण्णरसमं अज्झयणं 'भावणा' भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन भगवान् के पंच कल्याणक नक्षत्र 733. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था--- हत्युत्तराहि चुते' चइत्ता गम्भ वक्कते, हत्युत्तराहिं गब्भातो गम्भं साहरिते, हत्थुत्तराहिं जाते, हत्थुत्तराहिं सव्वतो' सन्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वइते, हत्थुत्तराहिं कसिणे पडिपुण्णे अन्वाघाते निरावरणे अणते अणुत्तरे केवलवरणाण-दंसणे समुप्पण्णे सातिणा भगवं परिणिन्ते / 733. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। जैसे कि-भगवान् का उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यवन हुआ, च्यव कर वे गर्भ में उत्पन्न हुए / उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से गर्भान्तर में संहरण किये गए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् का जन्म हुआ। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही सब ओर से सर्वथा (परिपूर्ण रूप से) मुण्डित होकर आगार (गृह) त्याग कर अनगार-धर्म में प्रवजित हुए / उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् को सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण, निर्व्याघात, निरावरण, अनन्त और अनुत्तर प्रवर (श्रेष्ठ) केवलज्ञान केवलदर्शन समुत्पन्न हुआ। स्वाति नक्षत्र में भगवान् परिनिर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुए। विवेचन--भगवान् महावीर के गर्भ में आने से निर्वाण तक के नक्षत्र- प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर के गर्भागमन से परिनिर्वाण तक के नक्षत्रों का निरूपण किया गया है / इस सम्बन्ध में आचार्यों के दो मत हैं- कुछ आचार्य गर्भसंहरण को कल्याणक में नहीं मानते, तदनुसार पंचकल्याणक इस प्रकार बनते हैं--१. गर्भ, 2. जन्म, 3. दीक्षा, 4. केवल ज्ञान, और 5. निर्वाण / किन्तु कुछ आचार्य गर्भसंहरण क्रिया को कल्याणक में मान कर प्रभु के 6 कल्याणक की कल्पना करते हैं।" 1. 'चुतें' के बदले 'चुओ', चुतो, चुए आदि का पाठान्तर हैं। 2. 'सव्वओ सम्वत्ताए' पाठ किसी-किसी प्रति में नहीं हैं। 3. 'अणंते' किसी-किसी प्रति में नहीं है। 4. कल्पसूत्र खरतरगच्छीय मान्य टीका / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org