________________ पन्द्रहवाँ अध्ययन : प्राथमिक 4 अहिंसादि पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति, दशविध श्रमणधर्म, आचार. नियमोपनियम आदि की भावना करना चारित्रभावना है। - "मैं किस निविगई आदि तप के आचरण से अपने दिवस को सफल बनाऊँ, कौन-सा तप करने में मैं समर्थ हैं ?" तथा तप के लिए द्रव्य क्षेत्रादि का विचार करना तपोभावना है। 35 सांसारिक सुख के प्रति विरक्तिरूप भावना वैराग्य भावना है। 4 कर्मबन्धजनक मद्यादि अष्टविध प्रमाद का आचरण न करना अप्रमादभावना है। - एकाग्रभावना-एकमात्र आत्म-स्वभाव में ही लीन होना। इसीतरह अनित्यादि 12 भावनाएं भी हैं। यों अनेक भावनाओं का अभ्यास करना 'भावना' के अन्तर्गत है। न भावना अध्ययन के पूर्वार्द्ध में दर्शनभावना के सन्दर्भ में आचार-प्रवचनकर्ता आसन्नोपकारी भगवान् महावीर का जीवन निरूपित है। उत्तरार्द्ध में चारित्र भावना के सन्दर्भ में पांच महाव्रत एवं उनके परिपालन-परिशोधनार्थ 25 भावनाओं का वर्णन है। 1. (क) आचारांम नियुक्ति गा० 327 से 341 तक / (ख) आचा० वृत्ति पत्रांक 418-416 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org