________________ // तृतीय चूला // भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन प्राथमिक र आचारांग सूत्र (द्वि० श्र०) के पन्द्रहवें अध्ययन का नाम भावना है—यह तीसरी चूला र भावना साधु जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण और सशक्त नौका है। उसके द्वारा मुक्ति मार्ग का पथिक साधक मोक्ष यात्रा की मंजिल निर्विघ्नता से पार कर सकता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि के साथ भावना जुड़ जाने से साधक उत्साह, श्रद्धा और संवेग के साथ साधना के राजमार्ग पर गति-प्रगति कर सकता है, अन्यथा विध्नबाधाओं, परीषहोपसों या कष्टों के समय ज्ञानादि की साधना से घबराकर भय और प्रलोभन के उत्पथ पर उसके मुड़ जाने की साम्भावना है। भावनाध्ययन के पीछे यही उद्देश्य निहित है। * भावना के मुख्य दो भेद हैं-द्रव्य-भावना और भाव-भावना। 4 द्रव्यभावना का अर्थ दिखावटी-बनावटी भावना, अथवा जाई के फूल आदि द्रव्यों से तिल तेल आदि की या रासायनिक द्रव्यों से भावना देना-द्रव्य-भावना है। * भाव-भावना प्रशस्त और अप्रशस्त के भेद से दो प्रकार की है। प्राणिवध; मृषावाद आदि की अशुभ या क्रोधादि कषायों में कलुषित विचार अशुभ भावना, अप्रशस्त भावना है। प्रशस्त भावना दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, वैराग्य आदि की लीनता में होती है। तीर्थकरों के पंचकल्याणकों, उनके गणों तथा उनके प्रवचनों द्वादशांग गणिपिटकों, युगप्रधान प्रावनिक आचार्यो, तथा अतिशय ऋद्धिमान एवं लब्धिमान, चतुर्दश पूर्वधर, केवलज्ञान-अवधि-मन पर्यायज्ञान सम्पन्न मुनिवरों के दर्शन, उपदेश-श्रवण, गुणोत्कीर्तन, स्तवन आदि दर्शन-भावना के रूप हैं। इनसे दर्शन-विशुद्धि होती है। - जीव, अजीव, पुण्य-पाप, बन्ध-मोक्ष, बन्धन-मुक्ति, बन्ध, बन्ध-हेतु, बन्धफल, निर्जरा, तत्त्वों का ज्ञान स्वयं करना, गुरुकुलवास करके आगम का स्वाध्याय करना, दूसरों को वाचना देना, जिनेन्द्र प्रवचन आदि पर अनुशीलन करना ज्ञान-भावना के अन्तर्गत है। मेरा ज्ञान विशिष्टतर हो, इस आशय से प्रसंगोपात्त ज्ञान का अभ्यास निरन्तर करे, इस प्रकार ज्ञानवृद्धि के लिए प्रयत्न करना भी ज्ञान भावना है। 1. भावणा जोगसुद्धप्पा जले नावा व आहिया / ---सूत्रकृतांग 1/15/5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org