________________ प्रयोदश अध्ययन : प्राथमिक 343 र ऐसी परक्रिया विविध रूपों में गृहस्थादि से लेना साधु के लिए वर्जित है / वृत्तिकार ने स्पष्टीकरण किया है कि गच्छ-निर्गत जिनकल्पी या, प्रतिमाप्रतिपन्न साधु के लिए परक्रिया का सर्वथा निषेध है, किन्तु गच्छान्तर्गत स्थविरकल्पी के लिए कारणवश यतना करने का निर्देश है / ' - इस अध्ययन में परक्रिया की परिभाषा, परिणाम, पाद-काय-त्रण-गंडादि-परिकर्म-रूप परक्रिया निषेध, मलनिष्कासन, केश-रोमकर्तन, जूं-लीख-निष्कासन, अंक-पर्यंक पादकाय-व्रणादि परिकर्म, आभूषण-परिधान, चिकित्सा आदि के रूप में परिचर्या का निषेध है। अन्त में, कृत-कर्म फलस्वरूप प्राप्त वेदना को समभावपूर्वक सहने का उपदेश भी है। 1. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 415; 416 (ख) आचारांग नियुक्ति 326 गा० 2. आचा० मूलपाठ वृत्ति 416 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org