________________ एकादश अध्ययन : सूत्र 673-76 बजाया जाने वाले वाद्य के शब्द / किरकिरिसहाणि -बांस आदि की छड़ी में बजाये जाने वाले वाद्य के शब्द / पिरपिरियसहाणि = बांस आदि की नाली से बजने वाले वाद्य शब्द, अथवा देशी भाषा में पिपुड़ी। विविध स्थानों में शब्देन्द्रिय-संयम 673. से भिक्खू वा 2 अहावेगइयाइं सहाई सुणेति, तंजहा-वप्पाणि' वा फलिहाणि वा जाव सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सहाई कण्णसोयपडियाए गो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 674. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सद्दाई सुणेइ, तंजहा--कच्छाणि वा णूमाणि वा गहणाणि वा वणाणि वा वणदुग्गाणि वा पव्ययाणि वा पन्वयदुग्गाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 675. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सद्दाई सुर्णेति, तंजहा-गामाणि' वा नगराणि वा निगमाणि वा रायधाणाणि वा आसम-पट्टण-सण्णिवेसाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई सद्दाइं णो अभिसंधारेज्जा गमणाए , 676. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाइं सद्दाइं सुति, तंजहा आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि बा पवाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई सद्दाइं णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 677. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सदाई सुणेति, तंजहा-अट्टाणि वा अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई सद्दाई णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 1. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 412 (ख) आचा० चूणि मू० पा० टि० पृ० 241 (ग) पाइअपद्माणबो (घ) निशीथ चूणि उ० 1. पृ० 201 / / 2. 'वप्पाणि वा' आदि का अर्थ वृत्तिकार ने स्पष्ट किया है-वप्रः केदारस्तटादिर्वा, तद्वर्णकाः शब्दा वप्रा एवोक्ताः वप्र-कहते हैं—क्यारी को, अथवा तट आदि को, उसका वर्णन करने वाले शब्द भी वप्र कहलाते हैं। 3. 'सराणि वा सरपंतियाणि वा' के बदले पाठान्तर है-सागराणि वा सरपंतियाणि वा, सागराणि वा सरसरपंतियाणि है। बणदुग्गाणि या के बाद पन्वयाणि वा किसी-किसी प्रति में नहीं है। निशीथणि में उ०१२ पृ०३४४-३४६, 347 में इन सबकी विशेष व्याख्या की गई है.-- "कररादियाण गम्मो गामो। ण करा जत्थ तं णगरं / खेड नाम धुलीपागारपरिक्खित्त। नगर कब्बडं / जोयणमंतरे जस्स गामादि नत्थि तं मडंबं। सुग्णादि आगरो। पट्टणं दुविहं जलपट्टणं थलपट्टणं च, जलेण जस्स भंडमागच्छति तं जलपट्टणं, इतरं थलपट्टणं / दोणि मुहा जस्स तं दोणपहं जलेण वि थले वि भंडमागन्छति / आसमं नाम तावसमादीणं / सत्थावासणणं सन्निवेस। मामो वा पट्टितो सन्निविट्ठो जत्तागतो वा लोगो सन्निविट्टो तं सन्निवेसं भण्णति / अन्नस्थ किसि करेत्ता अन्नत्य वोढ़ वसंति तं संवाहं भन्नति / घोसं गोउलं। वणियवग्गो जत्थ वसति तं नेगम। अंसिया गामवतियभागादी। भंडग्गाहणा जत्थ भिज्जंति तं पूडाभेदं / जत्थ राया वसति सा राजधाणी। 6. 'रायहाणि'–पाठान्तर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org