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________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध 678. से भिक्खू वा 2 अहावेगलियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा-तियाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउमुहाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई सद्दाई णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 676. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा-महिसकरणढाणाणि वा वसभकरणट्ठाणाणि वा अस्सकरणट्ठाणाणि' वा हस्थिकरणट्ठाणाणि वा जाव कविजलकरणठाणाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई सद्दाइनो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 673. वह साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे कि-खेत की क्यारियों में तथा खाइयों में होने वाले शब्द यावत् सरोवरों में. समुद्रों में, सरोवर की पंक्तियों या सरोवर के बाद सरोवर की पंक्तियों के शब्द अन्य इसी प्रकार के विविध शब्द, किन्तु उन्हें कानों से श्रवण करने के लिए जाने का मन में संकल्प न करे। 674. साधु या साध्वी कतिपय शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि नदी तटीय जलबहुल प्रदेशों, (कच्छों) में, भूमिगृहों या प्रच्छन्न स्थानों में, वृक्षों से सघन एवं गहन प्रदेशों में, वनों में, वन के दुर्गम प्रदेशों में, पर्वतों पर, या पर्वतीय दुर्गों में तथा इसीप्रकार के अन्य प्रदेशों में, किन्तु उन शब्दों को कानों से श्रवण करने के उद्देश्य से गमन करने का संकल्प न करे / 675. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे-गांवों में, नगरों में, निगमों में, राजधानी में, आश्रम, पत्तन और सन्निवेशों में या अन्य इसीप्रकार के नाना रूपों में होने वाले शब्द हैं. किन्त साध-साध्वी उन्हें सनने की लालसा से न जाए। 676. साधु या साध्वी के कानों में कई प्रकार के शब्द पड़ते हैं, जैसे कि-आरामगारों में, उद्यानों में, वनों में, वनखण्डों में, देवकुलों में, सभाओं में, प्याऊओं में या अन्य इसीप्रकार के विविध स्थानों में, किन्तु इन कर्णप्रिय शब्दों को सुनने की उत्सुकता से जाने का संकल्प न करे। 677. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-अटारियों में, प्राकार से सम्बद्ध अट्टालयों में, नगर के मध्य में स्थित राजमार्गों में; द्वारों या नगर-द्वारों तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में, किन्तु इन शब्दों को सुनने हेतु किसी भी स्थान में जाने का संकल्प न करे। 678. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-तिराहों पर, चौकों में, चौराहों पर, चतुर्मुख मार्गों में तथा इसीप्रकार के अन्य स्थानों में, परन्तु इन शब्दों को श्रवण करने के लिए कहीं भी जाने का संकल्प न करे। 676. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते है, जैसे कि-भेंसों के स्थान, आसकरणं का अर्थ निशीथ चणि में किया गया है-आससिक्खावणं आसकरणं एवं सेसाणि वि। अश्वकरण कहते हैं---अश्वशिक्षा देने को। इसी प्रकार शेष करणों के सम्बन्ध में जान लें। 2. यहाँ जाव शब्द से हथिकरणट्ठाणाणि से कविजलकरणहाणाणि तक का पाठ सू०६५७ के अनुसार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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