________________ एगारसमं अज्झयणं 'सद्दसत्तिक्कओ'' शब्द सप्तक : एकादश अध्ययन : चतुर्थ सप्तिका वाद्यादि शब्द श्रवण-उत्कण्ठा-निषेध 669. से भिक्खू वा 2 मुइंगसहाणि वा नंदीसहाणि वा झल्लरीसद्दाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई वितताई सहाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 670. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सद्दाई सुणेति, तंजहा-वीणासद्दाणि वा विवंचिसहाणि वा बद्धीसगसद्दाणि वा तुणयसद्दाणि वा पणवसद्दाणि वा तुंबवीणियसद्दाणि वा ढकुसद्दाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाणि सद्दाणि तताई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 671. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सद्दाइं सुति, तंजहा--तालसद्दाणि वा कंसतालसद्दाणि वा लत्तियसहाणि वा गोहियसहाणि वा किरिकिरिसद्दाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई तालसद्दाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 672. से भिक्खू वा 2 अहावेगतियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा-संखसहाणि वा वेणु चणिकार ने 'रूपसप्तककः' नामक पंचम अध्ययन को चतुर्थ माना है और 'शब्दसप्तकक:' को पंचम / अतः शब्दसप्तकक में चूर्णिकार सम्मत पाठ इतना ही है-एवं सद्दाई पि संखादीणि / तताणि, वीणा ववीसमुग्धोसादीणि वितताणि बंभादि / धणाई उज्जउललक्कुडा। सुसिराई बंसपब्वगादि पव्वादीणि / सई सुणेत्ताणं जितो जाति पिक्खतो वणिज्जतेसु वा रामादीणि जाति / पंचम सत्तिक्कगं समत्तं / ' अर्थात्-इसी प्रकार शब्दों के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए / शंखादि शब्द तत हैं, वीणा, ववीस, उद्घोष आदि के शब्द वितत हैं, भंभा आदि घन, उज्ज्वकुल आदि ताल शब्द। शुधिर बाँस, पर्वकपर्वादि के शब्द / किसी शब्द को सुनकर रागादि को प्राप्त करता है, अथवा रूप आदि को देख कर उसका वर्णन करने से राग-द्वेष आदि होते हैं / इस प्रकार पंचम सप्तकक समाप्त / 2. सू० 666 का संक्षेप में अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में----‘स पूर्वाधिकृतो भिक्षुर्यदि वितत-तत-घन-शूषिर रूपांश्चतुर्विधानातोद्यशब्दान शणुयात् ततस्तच्छ्वणप्रतिज्ञया नाभिसंधारयेद् गमनाय, न तदाकर्णनाय गमनं कुर्यादित्यर्थ:।' इसका भावार्थ विवेचन में दिया जा चुका है। 3. 'अहावेगतियाई के बदले पाठान्तर है-अहावेगयाइ। 4. ढकुणसद्धाणि के बदले पाठान्तर है-'ढकुलसद्दाणि, ढकुणसदाणि / 5. तत का अर्थ वृत्तिकार ने किया है--ततं वीणा-विपंची-बब्बीसकादि तंत्रीवायम् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org