________________ आचारांग सूत्र---द्वितीय अ तस्कन्ध 655. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल के सम्बन्ध में जाने कि यहाँ पर गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्रों ने शाली, ब्रीहि (धान), मूंग, उड़द, तिल, कुलत्थ, जो और ज्वार आदि बोए हुए हैं, बो रहे हैं या बोएंगे, ऐसे अथवा अन्य इसी प्रकार के बीज बोए हुए स्थण्डिल में मलमूत्रादि का विसर्जन न करे। ___656. साधु या साध्वी यदि ऐसे किसी स्थण्डिल को जाने, जहां कचरे (कूड़े-कर्कट) के ढेर हों, भूमि फटी हुई या पोली हो, भूमि पर रेखाएं (दरारें) पड़ी हुई हों, कीचड़ हो, ठूठ अथवा खीले गाड़े हुए हों, किले की दीवार या प्राकार आदि हो, सम-विषम स्थान हों, ऐसे अथवा अन्य इसीप्रकार के ऊबड़-खाबड़ स्थण्डिल पर मल-मूत्र विसर्जन न करे / 657. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहां मनुष्यों के भोजन पकाने के चूल्हे आदि सामान रखे हों, तथा भैस, बैल, घोड़ा, मुर्गा या कुत्ता, लावक पक्षी, बत्तक, तीतर कबूतर, कपिजल (पक्षी विशेष) आदि के आश्रय स्थान हों, ऐसे तथा अन्य इसीप्रकार के किसी पशु-पक्षी के आश्रय स्थान हों, तो इस प्रकार के स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे। 658. साधु या साध्वी यदि ऐमे स्थण्डिल को जाने, जहाँ फाँसी पर लटकाने के स्थान हों; गद्धपृष्ठमरण के .- गीध के सामने पड़कर मरने के स्थान हों, वृक्ष पर से गिरकर मरने के स्थान हों, पर्वत से झंपापात करके मरने के स्थान हों, विषभक्षण करने के स्थान हों, या दौड़कर आग में गिरने के स्थान हों, ऐसे और अन्य इसी प्रकार के मृत्युदण्ड देने या आत्महत्या करने के स्थान वाले स्थण्डिल हों तो वैसे स्थण्डिलों में मल-मूत्र त्याग न करे। 656. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जैसे कि बगीचा (उपवन), उद्यान, वन, वनखण्ड, देवकुल, सभा या प्याऊ, हो अथवा अन्य इसी प्रकार का कोई पवित्र या रमणीय स्थान हो, तो उस प्रकार के स्थण्डिल में वह मल-मूत्र विसर्जन न करे। 660. साधु या साध्वी ऐसे किसी स्थण्डिल को जाने, जैसे-कोट की अटारी हों, किले और नगर के बीच के मार्ग हों; द्वार हों, नगर के मुख्य द्वार हों, ऐसे तथा अन्य इसी प्रकार के सार्वजनिक आवागमन के स्थल हों, तो ऐसे स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे / 661. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ तिराहे (तीन मार्ग मिलते) हों, चौक हों, चौहट्टे या चौराहे (चार मार्ग मिलते) हों, चतुर्मुख (चारों ओर द्वार वाले बंगला आदि) स्थान हों, ऐसे तथा अन्य इसी प्रकार के सार्वजनिक जनपथ हों. ऐसे स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे। 662. साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ लकड़ियां जलाकर कोयले बनाए जाते हों; जो काष्ठादि जलाकर राख बनाने के स्थान हों, मुर्दे जलाने के स्थान हों. मृतक के स्तूप हों, मृतक के चैत्य हों, ऐसा तथा इसी प्रकार का कोई स्थण्डिल हो, तो वहाँ पर मल-मूत्रविसर्जन न करे। 663. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि नदी तट पर बने तीर्थस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org