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________________ दशम अध्ययन : सूत्र 646-67 317 कृत हो या अपुरुषान्तरकृत, यावत् बाहर निकाला हुआ हो, अथवा अन्य किसी उस प्रकार के दोष से युक्त स्थण्डिल हो तो वहां पर मल-मूत्र विसर्जन न करे। 646. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो किसी भावुक गृहस्थने बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, दरिद्र, भिखारी या अतिथियों के उद्देश्य से प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ करके औद्देशिक दोषयुक्त बनाया है, तो उस प्रकार के अपुरुषान्तरकृत यावत् काम में नहीं लिया गया हो तो उस अपरिभुक्त स्थण्डिल में या अन्य उस प्रकार के किसी एषणादि दोष से युक्त स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे / यदि वह यह जान ले कि पूर्वोक्त स्थण्डिल पुरुषान्तरकृत यावत् अन्य लोगों द्वारा उपभुक्त है, और अन्य उस प्रकार के दोषों से रहित स्थण्डिल है तो साधु या साध्वी उस पर मलमुत्र विसर्जन कर सकते हैं। 650 साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का स्थण्डिल जाने, जो कि निग्रन्थ-निष्परिग्रही साधुओं को देने की प्रतिज्ञा से किसी गृहस्थ ने बनाया है, बनवाया है, या उधार लिया है, उस पर छप्पर छाया है या छत डाली है, उने घिसकर सम किया है, कोमल या चिकना बना दिया है, उसे लीपापोता है, संवारा है, धूप आदि से सुगन्धित किया है, अथवा अन्य भी इस प्रकार के आरम्भ-समारम्भ करके उसे तैयार किया है तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर वह मल-मूत्र विसर्जन न करे / 651. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द, मूल यावत् हरी जिसके अन्दर से बाहर ले जा रहे हैं, या बाहर से भीतर ले जा रहे हैं, अथवा उसप्रकार की किन्ही सचित्त वस्तुओं को इधर-उधर कर रहे हैं, तो उस प्रकार के स्थण्डिल में साधु-साध्वी मल-मूत्र विसर्जन न करे। 652. साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि स्कन्ध (दीवार या पेड़ के स्कन्ध पर, चौको (पीठ) पर, मचान पर, ऊपर की मंजिल पर, अटारी पर या महल पर या अन्य किसी विषम या ऊंचे स्थान पर, बना हुआ है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर वह मलमूत्र विसर्जन न करे। 653. साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि सचित्त पृथ्वी पर, स्निग्ध (गीली) पृथ्वी परः सचित्त रज से लिप्त या संसृष्ट पृथ्वी पर सचित्त मिट्टी से बनाई हुई जगह पर सचित्त शिला पर, सचित्त पत्थर के टुकड़ों पर, घुन लगे हुए काष्ठ पर या दीमक आदि द्वीन्द्रियादि जीवों से अधिष्ठित काष्ठ पर या मकड़ी के जालों से युक्त स्थण्डिल पर मलमूत्र विसर्जन न करे। 654. साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल के सम्बन्ध में जाने कि यहां पर गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्रों ने कंद, मूल यावत् बीज आदि इधर-उधर फेंके हैं, या फेंक रहे हैं, अथवा फेंकेगे, तो ऐसे अथवा इसी प्रकार के अन्य किसी दोषयुक्त स्थण्डिल में मल-मूत्रादि का त्याग न करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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