________________ 264 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध तरुण बलिष्ठ स्वस्थ और स्थिरसंहननवाला है, वह इस प्रकार का एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। 586. से भिवखू वा 2 परं अद्धजोयणमेराए पायपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 586. वह साधु, साध्वी अद्ध योजन के उपरान्त पात्र लेने के लिए जाने का मन में विचार न करे। विवेचन---इन दोनों सूत्रों में साधु के लिए ग्राह्य पात्र के कितने प्रकार हैं, किस साधु को कितने पात्र रखने चाहिए? एवं पात्र के लिए कितनी दूर तक जा सकता है ? ये सब विधिनिषेध बता दिये हैं वृत्तिकार एक पात्र रखने के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण करते हैं कि "जो साधु तरुण बलिष्ठ तथा स्थिर संहनन वाला हो, वह एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं वह जिनकल्पिक या विशिष्ट अभिग्रह धारक आदि हो सकता है। इनके अतिरिक्त साधु तो मात्रक (भाजन) सहित दूसरा पात्र रख सकता है / संघाड़े के साथ रहने पर वह दो पात्र रखें-एक भोजन के लिए दूसरे पानी के लिए और मात्रक का आचार्यादि के लिये पंचम समिति के हेतु उपयोग को / ' निशीथ और वृहत्कल्पसूत्र में भी एक पात्र रखने का विधान / एषणा दोषयुक्त पात्र ग्रहण-निषेध 560. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण पायं जाणेज्जा अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई 4 जहा पिडेषणाए चत्तारि आलावगा। पंचमो बहवे' समण-माहण पगणिय 2 तहेव। 561. से भिक्खू वा 2 अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समण-माहण वत्थेसणाऽऽलावओ। 560. साधु या साध्वी को यदि पात्र के सम्बन्ध में यह ज्ञात हो जाए कि किसी भावुक गृहस्थ ने धन के सम्बन्ध से रहित निर्ग्रन्थ साधु को देने की प्रतिज्ञा (विचार) करके किसी 1. आचारांग वृत्ति पत्रांक 66 2. (क) जे णिग्गंथे तरुणे बलवं जुवाणे से एग पायं धारेज्जा, णो बितियं / ' -निशीथ सूत्र उ० 13 पृ. 441 (ख) “जे भिक्खू तरुणे जुगवं बलव से एग पायं धारेज्जा।" --वृहत्कल्प सूत्र पृ० 1106 3. 'बहवे समण-माहण......' इत्यादि शब्दों से पिण्डषणाऽध्ययन के अन्तर्गत (सूत्र 33212) छठा आलापक पहले दे दिया है, उसके बाद 'अस्संजए भिक्खपडियाए......इस पाठ से वस्त्रषणाऽध्ययन के अन्तर्गत ५५६वां सूत्र यहाँ विविक्षित है। वस्त्रषणा-अध्ययन में भी यही क्रम है, वैसा ही सूत्रपाठ है, किन्तु यहाँ भिन्न श्रम रखा है, यह विचारणीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org