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________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 522-26 215 कहकर 'पुरुष-वेषधारी' कहना चाहिए इसी प्रकार स्त्री वेषधारी को स्त्री न कहकर 'स्त्रीवेषधारी' कहना चाहिए ; ताकि शंकित व असत्य-दोष से भाषा दूषित न हो। एवौं वा चेयं, अण्णं वा चेयं का तात्पर्य वृत्तिकार के अनुसार है-यह ऐसा है, या यह दूसरे प्रकार का है। किन्तु चूर्णिकार इसका तात्पर्य निषेधात्मक बताते हैं यह ऐसा ही हैं, इस प्रकार संदिग्ध अथवा यह अन्यथा (दूसरी तरह का) है, इसप्रकार का असंदिग्धवचन नहीं बोलना चाहिए।' चार प्रकार की भाषा : विहित-अविहित ___ 522. इच्चेयाई आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासज्जायाई, तंजहा-सच्चमेगं पढमं भासजातं, बीयं मोसं, ततियं सच्चामोसं, जं व सच्चं व मोसं व सच्चामोसं णाम तं चउत्थं भासज्जातं / से बेमि-जे य अतीता जे प पडुप्पण्णा जे य अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एताणि चेव चत्तारि भासज्जाताई भासिसु वा भासिंति वा भासिस्संति वा, पण्णविसु वा 3 / सव्वाइं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फासमंताणि चयोवचइयाई विप्परिणामधम्माइं भवंति त्ति अक्खाताई। 523. से भिक्खू वा 2 [से ज्जं पुण जाणेज्जा-] पुव्वं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवीइकंतं च णं भासिता भासा अभासा। 524. से भिक्खू बा 2 जा य भासा सच्चा, जा य भासा मोसा, जा य भासा सच्चामोसा 1. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 386, (ख) आचा. चूणि मू. पा. पृ० 160 2. 'सच्चमेगं' के बदले पाठान्तर हैं-सच्चमेतं, सच्चमेयं, सच्चमेमं / 3. 'पण्णविसु वा' के आगे 3 का अंक शेष (पण्णवेति वा पण्णविस्संति वा) पाठ का सूचक है। 4. 'रसमंताणि फासमंताणि' के बदले पाठान्तर हैं.---'रसवंताणि फासवंताणि / 'चयोवचइयाइ' के बदले चर्णिकार 'चयोवचयाइ' पाठान्तर मानकर व्याख्या करते हैं-चयोवचयाई अनित्यो (शब्द)---वैशेषिकाः, वैदिका:-नित्यः शब्द:---यथा वायुर्वीजनादिभिरभिव्यज्यते, एवं शब्द:, ण च एवमारहतानां, यथा पट: चीयते अवचीयते च, एवं विष्परिणामसभावाणि, 'ते चेव णं-ते भंते ! सुब्भिसहा पोग्गला दुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुग्भिसदा वि पोग्गला सुन्भिसत्ताए परिणमति / ' अर्थात्-वैशेषिक कहते हैं-शब्द अनित्य है, वैदिक कहते हैं-शब्द नित्य है, जैसे वायु पंखे आदि के द्वारा अभिव्यक्त होती है, वैसे ही शब्द है / आर्हतमतानुसार ऐसा नहीं है, यहाँ शब्द आदि पुद्गल है, जो परिणामी हैं। जैसे वस्त्र का चय-अपचय होता है, इसीप्रकार सभी पुद्गल परिणमनस्वभाव वाले होते हैं। जैसे कि शास्त्र में कहा है-"ते चेव भंते !" ये सुशब्द के पुद्गल दुःशब्द के रूप में परिणत होते हैं, दुःशब्द के पुद्गल भी सुशब्द के रूप में परिणत होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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